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अन्तिम कसौटी
हरिश्चन्द्र के सत्य की अग्नि - परीक्षा आज, सावधान हो देखिये सत्य - शक्ति का राज !
आज दृश्य अत्यन्त भयंकर, तमस्तोम चहुं दिशि छाया, अमा रात्रि ने अपना असली रूप भयानक दिखलाया। तारा एक न नभ में दिखता बादल डमड़ रहे काले, वर्षा के कारण अति भीषण रव से गर्ज रहे नाले ।
झंझावात वेग से चलता, बिजली कड़क रही क्षण - क्षण, बार - बार वज्र-ध्वनि होती, समय प्रलय-सा है भीषण ! मरघट क्या है, मृत्यु राक्षसी नाच रही है कण - कण, एक छत्र है राज्य भीति का, कम्पित हो मानव थर-थर ! कहीं खोपड़ी पड़ी हुई है, कहीं चिता के ढेर लगे, कहीं अस्थियाँ तिड़क रही हैं, कुक्कुर - दल के भाग्य जगे। जम्बुक, घोर अमंगल - ध्वनि से इधर - उधर हु-हू करते, घक-राज वृक्षों पर बैठे कर्ण कटुक चोखें भरते । यहीं एक अश्वत्थ वृक्ष के नीचे घूम रहा मानव, आओ देखें, अपना परिचित है अथवा कोई अभिनव ? घुटनों तक है बाहु प्रलम्बित, दीर्घ वक्ष, उन्नत मस्तक, गौर वर्ण, पर चिता - धूम्र की धूसरता है विक्षोभक । अस्त-व्यस्त से बढ़े हुए हैं, केश-शीश औ' दाढ़ी के, संकल्पों से घिरा हुआ है, मरघट की रखवाली के ।
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