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सत्य हरिश्चन्द्र
सामग्री लाने पर भोजन बना खिलाया तो क्या है ? पति - सेवा में, तारा तेरा फिर वैशिष्ट्य कहो क्या है ? श्रान्त - बुभुक्षित भी मजदूरी करने को प्रिय पति जाएँ, हम निष्क्रिय ठंढी छाया में बैठी पत्नी - सुख पाएँ । मैं अर्धांगिनि स्वामी की हूँ, वे राजा थे, मैं रानी, आज बने मजदूर, बनूँ मैं, मजदूरिन क्या हैरानी ? मेरे पत्नी होने का तब ही, होगा सार्थक जीवन, जब मैं उनको आते ही सानन्द, करू अर्पित भोजन।" आस - पास के धवल गृहों में, रानी ने मजदूरी की, बर्तन मल कर, पानी भर कर, सेवा सवकी पूरी की। गृहस्वामिनियाँ हुईं तुष्ट, अति भोजन की सामग्री दी, रानी ने झट बना प्रेम से, सर्व प्रथम रोहित को दी। आप स्वयं भूखी है पति के आने की इंतजारी है, पति के भोजन कर लेने पर ही, पत्नी की वारी है ।
गीत
धन्य तारा, धन्य तेरी जिन्दगी का राज है,
धन्य पतिव्रत, धन्य सेवा का सजाया साज है ! एक दिन थी जिसकी सेवा में हजारों दासियाँ,
हाँ, वही कौशल की रानी नौकरानी आज है ! राज्य - वैभव भूल कर, कर्तव्य - पालन में लगी,
अस्तु, श्रम के काम करने में न कुछ भी लाज है !
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