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________________ कच्चिद् विनयसम्पन्नः कुलपुत्रो बहुश्रुतः । अनसूयुरनुद्रष्टा सत्कृतस्ते पुरोहितः ॥ १००, ११. -जो उत्तम कुल में उत्पन्न, विनय सम्पन्न, बहुश्रत किसी के दोष न देखनेवाला, तथा शास्त्रोक्त धर्मों पर निरन्तर दृष्टि रखनेवाला हैं, उक्त पुरोहित विद्वान का तुमने पूर्णतः सत्कार - सम्मान किया है। कच्चिद् देवान पितृन् भृत्यान् गुरुन् पितृ समानपि । वृद्धांश्च तात वैद्यांश्च ब्राह्मणांश्चाभिमन्यसे ॥१३॥ -"तात ! क्या तुम देवतात्माओं, पितरों, भृत्यों, गुरुजनों, पिता के सामान आदरणीय वृद्धों, वैद्यों और विद्या-विनय सम्पन्न ब्राह्मणों, विद्वानों का सम्मान करते हो ? कच्चिदात्मसमाः शूराः श्रुतवन्तो जितेन्द्रियाः । कुलीनाश्चेङ्गितज्ञाश्च कृतास्ते तात मन्त्रिणः ॥१५॥ -तात ! क्या तुमने अपने ही समान शूरवीर, शास्त्रज्ञ, जीतेन्द्रिय, कुलीन, तथा बाहरी चेष्टाओं-इशारों से ही मन की बात समझ लेनेवाले योग्य व्यक्तियों को ही मन्त्री बनाया है ? कच्चिन्निद्रावशं नैषि कश्चित कालेऽवबुध्यसे । कच्चिच्चापररात्रेषु चिन्तयस्यर्थ नैपुणम् ॥१७॥ -भरत ! तुम असमय में ही निद्रा के वशीभूत तो नहीं होते ? समय पर जाग जाते हो न ? रात के पिछले प्रहर में अभीष्ट प्रयोजन के सिद्धि के उपाय पर विचार करते हो न ? कच्चिदर्थ विनिश्चित्य, लघुमूलं महोदयम् । क्षिप्रमारंभसे कर्म न, दीर्घयसि राघव ॥१६॥ -रघनन्दन ! जिस कार्य के निष्पादन के साधन बहत छोटे हैं, किन्तु फल बहुत बड़ा हो, ऐसे कार्य का निश्चय करने के बाद, तुम उसे शीघ्र प्रारम्भ कर देते हो ना.? उसमें बिलम्ब तो नहीं करते ? १जो परिवार एवं समाज सम्बन्धी विधि - विधानों के कार्यक्रम को सम्पादित करने के लिए अग्रगण्य रहकर हित साधन करता है, वह पुरोहित है। १०६ चिन्तन के झरोखे से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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