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मानव की वाणी अमृत भी, विष भी
मानव की वाणी अमृतवर्षी भी है, और विषवर्षी भी । एक युग था, जब वह अमृतवर्षी थी | जिनेन्द्र महावीर, तथागत बुद्ध एवं अन्य अमृत-कल्प व्यास आदि ऋषि-महर्षि, मुनि-सन्तों की वाणी से वह अमृत बरसा था, जिससे जीवन मिला था, अनेक मृतकल्प, मूर्छित आत्माओं को । जो शव की तरह पड़े सड़ रहे थे, गल रहे थे, वे उस अमृतवाणी का स्पर्श पाकर शिव हो गए थे, और उनके द्वारा वे लोक-मंगल के कार्य हुए, आज भी इतिहास उनका साक्षी है ।
दुर्भाग्य है, आज मानव की वाणी अधिकांश में विष की ही बरसा कर रही है । परस्पर में जाति, समाज, राष्ट्र, दल आदि के नाम पर, जो एक-दूसरे पर दुर्वचनों की वर्षा हो रही है, वह विष नहीं तो क्या है ? प्रकृति के विष की मारक-शक्ति की तो एक सीमा भी है । परन्तु, इस अनर्गल दुर्वचनों के विष की तो कोई सीमा ही नहीं है । यह तो सामूहिक रूप से मानव की मनो-मृत्यु का यमदूत है ।
__ आज विश्व में सब ओर जो अशान्ति है, कलह है, विग्रह है, मार-काट है, लूट-मार है, उसका मूल मनुष्य की विषवर्षी वाणी में ही है | जाति, समाज, दल और राष्ट्र नेता के नाम से पहचाने जाने वाले मानव तनधारी विषधर प्राणियों के द्वारा आये दिन वक्तव्यों के रूप में जो विष उगला जा रहा है, उससे मानवता का वातावरण इतना विषाक्त हो गया है कि स्वर्गापम भूमण्डल नरक बन गया है । अभी नहीं लगता कि ये नेता नामधारी मृत्युदूत विष के स्थान में अमृत बरसाएँगे। इनकी वाणी से जीवन) दाता अमृत बरसेगा | फलत: शक्ति, स्नेह की सुखद-शीतल हवाएँ प्रवाहित होंगी । अतः इनसे अपेक्षा है, अपेक्षा ही नहीं, आग्रह है, कि ये मौनव्रत की साधना अपना लें | अधिक नहीं, तो कृपया एक-दो वर्ष का भी मौन ले लें , कुछ भी न बोलें, तो मानव-जांति ठीक तरह
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