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आग को बुझाने का प्रयास किया और उसमें सफल भी रहे । इसलिए हम आज उस द्रष्टा की, निर्भय और निर्द्वन्द्व सत्य से प्रतिबद्ध अहिंसक सेनानी की, जयन्ती मना रहे हैं ।
___ यहाँ प्रस्तुत प्रदेश में जातीय एवं साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं । विभिन्न वर्गों एवं सम्प्रदायों के लोगों के बीच में हिंसा के ताण्डव नृत्य हुए हैं । इधर-उधर हाथों में हथगोले लिए, बन्दूकें उठाए घूम रहे थे । पूरे क्षेत्र का वातावरण अशान्त था । सरकार भी परेशान थी । सारी-सारी रात परस्पर एक-दूसरे को उत्तेजित करने वाले नारे वातावरण को दूषित कर रहे थे । उस समय वीरायतन द्वारा प्रचारित एवं प्रसारित किए गए मैत्री संदेश एवं समाधान गोष्ठियों द्वारा वातावरण को शान्त करने के लिए किए गए प्रयत्न काफी सफल रहे | वीरायतन ने दोनों पक्षों में समन्वय स्थापित किया है | इसमें साध्वीरत्न चन्दनाजी का पुरुषार्थ उल्लेखनीय रहा है | यहाँ के स्थानीय नेताओं को बुलाना, उन्हें प्रेम-स्नेह से समझाना और समस्याओं को बातचीत से सुलझाकर समझौता करा देना, यह चन्दनाजी का ही पुरुषार्थ था । यह है अहिंसा एवं मैत्री का सक्रिय रूप जिससे हमारे अनेक महानुभाव कतराते हैं, और कहते हैं, हमें इससे क्या लेना-देना है ? हमें तो हमारी आत्मा से काम है, अपनी आत्मा का कल्याण करना है ।
आज हम गाँधीजी को क्यों याद करते हैं। वैसे गाँधीजी गृहस्थ जीवन में ही रहे हैं । वे साधु-संन्यासी नहीं बने । फिर भी हम उन्हें याद करते हैं । भला क्यों ? वस्तुतः किसी सम्प्रदाय विशेष के साधु-वेष को ग्रहण करने या न करने का कोई विशेष महत्व नहीं है । साधुता सिर्फ वेष में नहीं है | वह वेषातीत है, अपने अन्तर् में है | जिसके जीवन में अन्तर्-ज्योति प्रज्वलित है, जो समय पर जनहित के लिए अपने स्वार्थ को होम देता है, यथार्थ दृष्टि से समाज को देखता है, उसे जीवन जीने की सही दिशा बताता है, जन-कल्याण एवं जन-मंगल का कार्य करता है, वह बाह्य वेष से भले ही साधु हो या चाहे गृहस्थ हो, स्मरणीय है । भले ही वह अपनी परम्परा का हो या अन्य परम्परा का हो सादर स्मरणीय है । धर्म, सत्कर्म किसी परम्परा में आबद्ध नहीं है । देश, पंथ, जाति आदि के भेदों से बहुत ऊपर है धर्म । व्यक्ति भले ही किसी प्रान्त का हो, किसी जाति का हो, किसी पंथ तथा किसी देश आदि का हो, जो यथार्थ का ज्ञाता-द्रष्टा है, अहिंसा-सत्य के प्रति प्रतिबद्ध है, वह स्मरणीय है ।
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