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________________ अनन्त मूर्ति : अनेकान्त विश्व - ब्रह्माण्ड में सर्व श्रेष्ठ कहे जाने वाले, एवं माने जानेवाले मानव-जाति में चिरकाल से एक भयंकर दावानल जल रहा है । और, उस दावानल में मानव जाति की मूलभूत श्रेष्ठता रूप मानवता भस्म होती जा रही है। मानवता ही तो मानव है। मानवता यदि नष्ट हो जाती है, तो फिर मानव कैसे बचा रह सकता है ? वह देह के रूप में मानव भले ही रह सकता है। किन्तु यह सिर्फ देहात्मक मानव तो पौराणिक काल के भयंकर सर्वग्रासी नरभक्षी राक्षसों से भी भयंकर है। यह दावानल कभी-कभी बीच में कुछ सीमित भी होता रहा है, कुछ शान्त भी होता रहा है, परन्तु कोई-न-कोई विकल्प पा कर पुनः पहले की अपेक्षा और भी अधिक तेज प्रज्वलित हो उठता है। इधर-उधर बिखरी चिनगारियाँ पुनः दावानल बन जाती हैं। कभी किसी जातीय दंभ के नाम पर, कभी किसी देशाभिमान के नाम पर कभी किसी अनियंत्रित राजनैतिक पार्टी के नाम पर, कभी किसी धर्मोन्माद के नाम पर, कभी किसी भाषा विवाद के नाम पर, नाम कहाँ तक गिनाएँ, किसी भी नाम पर द्वेष, वैर, घृणा, हिंसा, हत्या, आगजनी, लूटमार आदि अनेक रूपों में चतुर्दिक भीषण ज्वालाएँ फैल जाती हैं। जिसमें मात्र मानव-देहधारी दुष्टात्माओं का तो कुछ बिगडता नहीं है, किन्तु निरपराध, निरीह एवं भद्र जनता का सर्वनाश हो जाता है। और, इस सर्वनाश की आग में से वे ज्वालाएँ फूट पड़ती हैं, जो वर्षानुवर्ष ही नहीं, अपितु वंशानुवंश तक मानवता के रक्त से सनी होली का रूप लेती रहती हैं। आजकल यह दावानल बहुत ही भयंकर रूप में फैल रहा है। बुझाने के उपक्रम किए जा रहे हैं, फिर भी शान्त नहीं हो पा रहा है । अन्तर्मन की पीड़ा तो यह है कि कुछ छद्म वेशधारी शान्ति के देवता आग बुझाने के नाम पर, उसे (५०७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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