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________________ व्यक्ति होंगे । परन्तु आज वे महाश्रमण भगवान महावीर एवं उनके ज्योतिर्मय संदेशों को भूल गए हैं । उस दिव्य ज्योति को पुन: प्रज्वलित करने हेतु आप महानुभावों ने जिस प्रेम-स्नेह एवं सेवा-भावना की गंगा बहाई है, वह दिव्य-भव्य है | श्री नवलमलजी फिरोदिया, जिन्हें हम प्रेम से बाबा कहते हैं, इस अवस्था में भी उनका मस्तिष्क गतिशील है, नया चिन्तन है उनका और वह निरन्तर गतिशील है । वे एक-से-एक बढ़कर नई उद्भावनाएँ, नई योजनाएँ रख रहे हैं। उनकी अनेक नई योजनाएँ मूर्त रूप लेने के लिए प्रस्तुत हैं । आप में से अनेक साथी, अनेक प्रभु भक्त उन योजनाओं को साकार रूप देने में, उन्हें आगे बढ़ाने में, उनके साथ हैं। चन्दनाश्रीजी निरन्तर कुछ-न-कुछ नए स्वप्न देखती रहती हैं । ये सपने वे नहीं हैं, जो रात की नींद में देखे जाते हैं । ये तो जागृत अवस्था के सपने हैं । जागृति में जो स्वप्न देखेगा, वह नए दिव्य कर्म सामने लाएगा । इसलिए सपने देखो, परन्तु जागृत रहते हुए देखो । विराट लक्ष्य आपके सामने है। याद रखिए, गतिशील के लिए लक्ष्य दूर नहीं है । जो निराश -हताश हो कर बैठा है, उसके लिए लक्ष्य दूर है । जो उठ खड़ा हुआ और चल पड़ा है, उसके लिए लक्ष्य दूर नहीं बिल्कुल सामने है । हजारों वर्ष पहले, हमारे महान आचार्यों, ऋषियों ने कहा था - " आस्ते भग आसीनस्य, उर्ध्वं तिष्ठति तिष्ठतः । शेते निपद्यमानस्य, चराति चरतो भग : । " जो व्यक्ति आलसी है, कहता रहता है कि कुछ होने जैसा नहीं है । ऐसे सोए हुए व्यक्ति का भाग्य भी सोया पड़ा है | जो उठकर बैठ गया है, चल नहीं पा रहा है, उसका भाग्य भी बैठा है | किन्तु जो कर्म करने हेतु अंगडाई ले कर उठ खड़ा हुआ है, उसका भाग्य भी खड़ा हो गया है और जो निर्धारित कर्म पथ पर चल पड़ा है, उसके साथ उसका भाग्य भी चलने लगता है । इसलिए हमारा प्रयाण गीत है- " चरैवेति चरैवेति " चलते चलो, निरन्तर चलते रहो, आगे बढ़ते रहो । गतिशील व्यक्ति का भाग्य भी गतिशील रहता है ।। महाश्रमण महाप्रभु महावीर की दिव्य वाणी हमको स्फूर्ति दे रही है कि स्वयं उठो, आगे बढ़ो और जो अभी तक व्यामोह की नींद से नहीं उठे हैं, उन्हें (५०५) "Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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