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________________ सेवापहाणो हि मणुस्स धम्मो : वर्तमान दुःस्थिति में हमारा कर्तव्य __ मानव, प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए अनादि-काल से संघर्ष करता आ रहा है । इस विजय-यात्रा में उसे कुछ सफलताएँ भी प्राप्त हुई हैं | और, उस पर उसके अन्तर्मन में, मिथ्या अहंकार का स्वर भी अनुगुंजित होने लगा है, किन्तु यथार्थ दृष्टि से देखा जाए, तो प्रकृति के रहस्यों को सही रूप से समझने में अब भी वह अक्षम है एवं पंगु स्थिति में है । विजय की बात तो अभी बहुत दूर है । मनुष्य ने अपने बौद्धिक बल से पाताल में समुद्रों की अतल कही जाने वाली गहराइयों को भी नाप लिया है । और ऊपर आकाश में देवलोक के रूप में विख्यात चन्द्रलोक पर भी विचरण करने लगा है । पौराणिक आख्यानों को इस तरह काफी उलट-पुलट दिया है उसने । यह सब - कुछ हुआ है और आगे भी हो रहा है, फिर भी जब प्रकृति के क्रूर प्रहार मानव पर सहसा आ पड़ते हैं, तो वह हक्का-बक्का रह जाता है, बेसहारा और लाचार, हीन और दीन । वर्तमान वर्ष के वर्षाकाल में मनुष्य की जो बदतर हालत हुई है, वह हुई है प्रकृति के रहस्यमय प्रहारों से | राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र, मद्रास, कर्नाटक, म. प्रदेश आदि अनेक जन-पदों में इतना सूखा पड़ा है कि पानी की कुछ बूंदें तक वर्षा के रूप में उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। गाँवों के जलाधार कूप और तालाब भी सूख गए हैं । यहाँ तक की कल-कल नाद करती बहने वाली कितनी ही नदियाँ भी शुष्क बालुका मात्र शेष रह गई हैं । यहाँ तक की मनुष्य को भी पीने तक के लिए पानी उपलब्ध नहीं है और मूक पशुओं के लिए न कहीं घास-चारा है और न पानी । सब ओर त्राहि-त्राहि मची हुई है । इस भयंकर दु:खद स्थिति से मुक्ति पाने के लिए कभी आकाशीय देवों की ओर आँखें जाती हैं और कभी सरकार तथा समाज-सेवी संस्थाओं पर | सहायता कार्य चल (४६८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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