SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पलियें तथा कन्याएँ भी थीं, तो दूसरी ओर हीनातिहीन रूप में अवमानना प्राप्त शूद्र एवं अतिशूद्र नारियाँ भी थीं । ऐसे 'हुरंगी एवं बहुआयामी संघ का नेतृत्व करना आसान नहीं होता ! किन्तु, आर्य चन्दना ने, जिस सद्भावना, सद्विवेक एवं उदार चेतना से संचालन किया वह संघ संचालन की परंपरा में एक अनुपम आदर्श उदाहरण है । बौद्ध त्रि-पिटक एवं जातक कथाओं में भी इसी दिव्य-रूप की ये देवियाँ हैं, जिन्हें भारत का इतिहास कभी भूल नहीं सकता | दानवीरता तथा विचक्षण बुद्धिमत्ता के रूप में विशाखा के अनेक जीवन-वृत्त केवल बौद्ध-संघ के लिए ही गौरव की वस्तु नहीं है, अपितु हम सबके लिए महामान्वित गरिमा के आदर्श हैं | __ मैं इतिहास की लम्बी गाथाओं में नहीं जाना चाहता । यह दिशा-निर्देशन ही इस दिशा में पर्याप्त है । किन्तु खेद है, आज नारी-जाति अपमान, अवमानना एवं तिरस्कार के अन्धगर्त में धकेली जा रही है । एक ओर उन्नति के शिखर तैयार हो रहे हैं, तो दूसरी ओर पतन के अन्धगर्त भी कुछ कम नहीं हैं। महर्षि मनु के द्वारा प्रमाणित ये देवियाँ आज इतनी अधिक प्रताड़ना की शिकार हो रही हैं कि किसी भी सहृदय व्यक्ति का कोमल हृदय खण्ड-खण्ड हुए बिना नहीं रह सकता । आज नारी का प्रेम, स्नेह एवं सौहार्द के सहज अमूल्य मूल्य के रूप में नहीं आंका जाता, अपितु क्षणभंगुर अर्थहीन अर्थ के रूप में ही उसका मूल्यांकन किया जा रहा है । प्रेम के देवत्व के स्थान पर पैसे के पिशाच ने आसन जमा लिया है । यदि ऐसा न होता, तो आए दिन समाचार-पत्रों में गृह लक्ष्मियों के जीवित अग्नि प्रवेश के समाचार कैसे मिलते ? दहेज का दानव कितना उद्दण्ड हो गया है कि उसकी दुर्दृष्टि में नारी के जीवन का एक धूलिकण जितना भी मूल्य नहीं रहा है । नवागत गृह लक्ष्मियों को धन के लोभी अर्थ पिशाच जिस किसी रूप में या तो खुद जला देते हैं या इतनी अधिक प्रताड़नाएँ दी जाती हैं कि वे स्वयं अपने हाथों अग्नि-दाह के लिए मजबूर हो जाती हैं | अग्नि-दाह ही नहीं, मृत्यु-राक्षसी के अन्य भी अनेक ऐसे द्वार खुल गए हैं, जो गृह-देवियों के लिए यम द्वार हो जाते हैं । अन्यत्र क्या हो रहा है, वह तो निन्दनीय है ही । किन्तु अहिंसा के महान पक्षधर कहे जाने वाले जैन और वैष्णव परिवारों तक में भी इस घृणित (४५१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy