________________
कृपया, गृहदेवी की गरिमा को सुरक्षित रखिए
महान भारत के महान पौराणिक ऋषि मनु ने कभी कहा था - " यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: । ” अर्थात् जिस परिवार एवं समाज में नारी की पूजा होती है, नारी का सत्कार सम्मान होता है, वहाँ देवतागण प्रसन्न मन से क्रीड़ा करते हैं । वह घर, वह परिवार, वह समाज और वह राष्ट्र सहज आनन्द का क्रीड़ाकेन्द्र होता है । यह कितना उदात्त एवं अर्थ गंभीर वचन है । इस पर से स्पष्ट ही ध्वनित होता है कि पुरा-काल में मातृ-जाति महत्ता के उच्च शिखरों पर किस प्रकार समासीन थी ?
प्राचीन इतिहास साक्षी है कि प्राचीनतम वेदों एवं उपनिषदों, जैनागमों एवं त्रिपिटकों में भारतीय नारी के महिमा का संगान मुखर स्वर से अनुगुंजित है । वेदों की अनेक ऋचाओं की रचयिता विदुषी महिलाएँ हैं । उपनिषद काल की गार्गी वाचकन्वी विदेह जनक की सभा में वेद-वेदांग पारंगत महान महर्षि याज्ञवल्क्य तक को शास्त्रार्थ में छका देती है । महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी कितने विरक्त मन की है - जब याज्ञवल्क्य उसे अपनी अर्जित धन-संपत्ति देने लगे, तब उसने कहा था कि इस धन का मैं क्या करूँगी ? क्या मैं इससे अमरत्व पद को प्राप्त कर सकूँगी ? यदि नहीं, तो फिर इस अर्थहीन तुच्छ अर्थ को लेकर मुझे क्या करना है ?
रामायण और महाभारत काल की अनेक नारियाँ सहस्राधिक वर्षों के बाद आज भी भारतीय इतिहास के क्षितिज पर दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में जगमगा रहीं हैं । सीता और द्रौपदी को अलग रखकर रामायण और महाभारत का कुछ अर्थ ही नहीं रहता । वज्र संकल्प की धनी साम्राज्ञी थी ये दिव्य नारियाँ |
(४४९)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org