SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुप्रभात में आपके साथ नहीं हैं । किसी अज्ञात नई दुनिया में चले गए हैं । उनका कुछ अता पता नहीं कि वे अब कहाँ हैं? कैसे हैं? किस स्थिति में हैं ? आपने अपने जीवन में मृत अतीत में से जीवित वर्तमान में संक्रमण किया है, अत: सावधान रहिए । प्रस्तुत जीवित वर्तमान का यथोचित उपयोग करने के सम्बन्ध में प्राप्त स्थिति का सही, शुद्ध एवं मंगलमय उपयोग करना ही तुम्हारी अन्तर्-मानवता की श्रेष्ठता का द्योतक है । माना कि नई स्थिति का प्राप्त होने का योग दुर्लभ है, किन्तु प्राप्त स्थिति का संरक्षण एवं सही उपयोग क्षेम है, जो कि योग से भी दुर्लभतम है | नव-वर्ष का योग तो तुम्हें प्राप्त हो गया है । अब अपनी और अपने सहयोगियों की समग्र बौद्धिक चेतना एवं कर्म-शक्ति उसके क्षेम के लिए नियोजित करनी है । देखना है, तुम इसमें कितने सफल होते हो | तुम नहीं देखोगे, तो समाज तो देखेगा ही, कि तुम सही आदमी हो, या गलत | समाज तुम्हारी बौद्धिक एवं कर्म दोनों ही शक्तियों का मूल्यांकन करेगा ही । __ अतीत में तुम कैसे थे, वह भुला दिया जा सकता है, किन्तु वर्तमान की तुम्हारी यात्रा का एक-एक कदम समाज के समक्ष है । अत: समाज की आँखों से वह ओझल नहीं होगा । संभव है, आपका अतीत कुछ अनेक दु:खद घटनाओं में से गुजरा हो, तुम्हें रोना ही अधिक पड़ा हो, हँसने के कुछ ही क्षण मिले हों, वे कुछ क्षण भी संभवत: नहीं मिले हों, परन्तु अब वर्तमान आपके अपने हाथों में हैं । अतीत के अच्छे-बुरे परिबोध को एवं अनुभूतियों को ध्यान में रख कर वर्तमान का ऐसा निर्माण करना है, जो आपके लिए भी ज्योतिर्मय हो, तथा आपके अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र के लिए भी ज्योति-पुंज हो । अब अँधेरे में नहीं, प्रकाश में यात्रा करनी है । उत्साह हीनता से परे होकर, साहस के साथ उत्साह से जगमगाते परिबोध में यात्रा प्रारम्भ करनी है । मनुष्य का भाग्य उसके अपने हाथों में है । भाग्य कोई आकाश से नहीं उतरता, वह किसी से भिक्षा में भी नहीं मिलता । वह तो अपने ही पुरुषार्थ से निर्मित किया जाता है । हर स्थिति पर भाग्य की मोहर लगाते रहना, कायर व्यक्तियों का काम होता है । "क्या करना है, जो होना होगा, वही होगा? भाग्य की रेखा को कभी किसी ने बदला है? नहीं, नहीं । वह कभी बदली नहीं जा सकती ।" इस तरह की बातें कौन करते हैं । वे करते हैं, जिनका मन मर चुका (४२५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy