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________________ पिछले साल मरकार ने किसानों से १६ अरब पाउण्ड से ज्यादा का फालतू दूध खरीदा था । फिर उससे इतना पनीर और मक्खन बना, जिसे १२ अरब डालर खर्च कर देश भर के भंडागारों में रखना पड़ा । अमेरिका से इतना दूसरे देशों को निर्यात होने की संभावनाएँ भी खत्म हो चुकी हैं । उधर देश में एक करोड़ बारह लाख गायों की संख्या तेजी से बढ़ रही है | इन्हें अच्छा चारा मिलने से दूध बढ़ता जा रहा है । व्यापारिक डेरी फार्मों की संख्या १९६१ में छह लाख थी, जो घट कर १९८१ में दो लाख रह गई।" समाचार पत्र में अन्त में लिखा है-" गायों के मांस का निर्यात किया जाएगा अथवा देश में ही मुफ्त बाँटा जाएगा ।" __ अमेरिका अरबों-खरबों डालर संहारक शस्त्रों के रूप में खर्च कर रहा है । खेद है, वहाँ उसे अपने आर्थिक प्रश्न ध्यान में नहीं आते । निर्दोष मूक गायों के वध में ही आर्थिक समस्या का समाधान उसे दिखाई दे रहा है । यह कैसी विचित्र स्थिति है कि हानि के क्षुद्र छेद तो बन्द किए जा रहे हैं, किन्तु बड़े-बड़े भीमकाय द्वार खोले जा रहे हैं। क्या ही अच्छा हो, विश्व संहारक परमाणु शस्त्रास्त्रों की ओर से अपनी दुर्वृत्ति को हटाकर मानव एवं अन्य जीवन की रक्षा की दिशा में अपनी प्राप्त शक्ति का सदुपयोग किया जाए । अमेरिका अनुदान आदि के रूप में भी अपनी एक ख्याति अर्जन कर रहा है, किन्तु अविकसित एवं अर्ध-विकसित देशों में मानव इतने अभावग्रस्त हैं कि कुछ पूछो नहीं | अभी-अभी इथोपिया में भूख से पीड़ित दस लाख से भी अधिक मानव तड़फतड़फ कर मौत के शिकार हो गए हैं । वर्तमान में भी अनेक देश सूखे से पीड़ित हैं । अत: अन्नोत्पादन के अभाव में परिवार के परिवार आत्म-हत्या के द्वारा मर रहे हैं और कुछ घास की बनी रोटी खाकर जीवन के इने-गिने दिन गिन रहे हैं । अनेक हजार ग्रामीण क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहाँ मनुष्य ने माता के स्तन के दूध के सिवा जीवन भर अन्य दूध का रसास्वादन तक नहीं किया है । क्या अमेरिका अपने यहाँ के दुग्ध का प्रवाह इस ओर नहीं बहा सकता | यह भी तो मानव-सेवा का पुण्य-कर्म है । गायों को काटने की अपेक्षा यह पथ इतना अधिक प्रशस्त है कि वह विश्व जगत् में पुण्यार्जन के साथ-साथ महान यशस्वी हो सकता है | (३८०) . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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