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________________ आगरा से प्रकाशित दैनिक “अमर उजाला" के ६ जनवरी १९८६ के अंक में "कुदरत का कमाल" शीर्षक से एक घटना प्रकाशित हुई है । जिन्नासु पाठकों की एतत्सम्बन्धी विश्वस्तता के लिए उसे हम यहाँ ज्यों का त्यों उपस्थित कर रहे हैं । पाठक देखेंगे कि यह एक कैसी मनोरंजक चमत्कारी घटना है, मानवीय ज्ञान चेतना की । "हेवार्ड (कैलिफोर्निया) ५ जनवरी (ए.पी.) पत्नी की गर्भावस्था के अन्तिम महीने पति उसके पेट पर अपना गाल सटाकर अजन्मे शिशु से रोज सुबह तथा रात को बातें किया करता था । एक दिन इस अनूठे व्यक्ति डेनियलसन ने अपने अजन्मे शिशु से कहा “अरे बच्चे मैं तेरा पिता हूँ।" बस गर्भ के अन्दर से * शिशु ने जवाब में अपना पैर हिला दिया, जो गर्भवती ईलीन डेनियलसन के पेट पर साफ महसूस हो रहा था । गतवर्ष अक्टूबर में प्रसव कक्ष में डेनियलसन ने पहली बार अपने बेटे से आमने-सामने बात की । ताज्जुब की बात देखिए - पिता के,“अरे बच्चे मैं तेरा पिता हूँ" कहने पर शिशु का रोना बन्द । ईलान डेनियलसन ने बताया कि शिशु पिता की आवाज सुनते ही अपना सिर उठाकर उसे देखने लगा | यह बच्चा चार महीने की उम्र में “मम्मा" मम्मी तथा डैडी कहने लग गया था । सात महीने में तो वह चलने भी लग गया । अब तो जूस तथा वैक्कम जैसे कठिन शब्दों का भी सही-सही उच्चारण कर लेता है । वह अब लगातार १५-२० मिनट तक चित्रों की पुस्तक देखकर अपना मनोरंजन भी करता है । हाँ उसे “बेबी सुपीरियर" श्रेष्ठ बच्चे का खिताब मिल चुका है । इस बच्चे का प्रसव कराने वाले डॉ. एफ. रेन वानडे कार का कहना है कि यह अजूबा बालक माँ की आंतों की आवाज, उसके दिल की धड़कन, उसकी साँस की सूक्ष्म ध्वनि और अन्य कई बाहरी आवाजें आसानी से सुन लेता है । मानव जीवन की श्रेष्ठता के जो अमर गान धर्म शास्त्रों एवं पुराणों में अनुगुंजित हैं, वे इसी ज्ञान चेतना की सर्वोत्तम उपलब्धि के कारण हैं । उक्त ज्ञान चेतना का मानव यदि जन मंगल एवं लोक कल्याण के लिए उदात्त मन से उपयोग करे, तो वह अवश्य ही शास्त्रोक्त अपनी यशो-गाथा का सही अधिकारी हो सकता है । यदि ये चेतना यथोचित रूप में विकसित न हो एवं लोक कल्याण के पथ पर अग्रसर न हो तो मानव भी एक ऐसा पशु ही है जो मानव का तन तो रखता है, किन्तु मानव जैसा स्वच्छ निर्मल, एवं लोकहितंकर मन नहीं रखता। उसकी उत्कृष्टता और निकृष्टता अपनी बौद्धिक चेतना के सदुपयोग एवं दुरुपयोग (३६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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