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मानवीय ज्ञान चेतना का अद्भुत चमत्कार
विश्व के प्राणियों में मानव की ज्ञान चेतना सर्वोत्कृष्ट है । ज्ञानावरण कर्म के कारण उसकी ज्ञान चेतना आच्छादित रहती है, किन्तु पूर्णरूप से आच्छादन की स्थिति नहीं है | यदि पूर्ण रूप से आच्छादित हो जाए, तो वह चेतन से जड़ बन जाए, किन्तु कभी ऐसा होता नहीं है । मानव ही क्यों, जो भी चेतन तत्त्व है, वह एकेन्द्रियादि किसी भी ज्ञानावरण से आच्छादित नहीं होती । ज्ञानावरण का क्षयोपशम रहता है और उस क्षयोपशम के न्यूनाधिकता से ज्ञान चेतना न्यूनाधिक होती रहती है । साधारण मानव भी इसी स्थिति का प्राणी है ।
परन्तु मानव की एक विशिष्टता है ज्ञान चेतना के सम्बन्ध में । उसका क्षयोपशम विशिष्ट स्थिति को प्राप्त होता है, तो वह यथाप्रसंग मति, श्रुति, अवधिज्ञान की सीमाओं से पार होता हुआ मन:पर्याय - ज्ञान तक पहुँच जाता है । मन:पर्याय - ज्ञान का क्षयोपशम मानव के अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं होता है, यहाँ तक कि देवों को भी नहीं होता है । यदि ज्ञानावरण का पूर्णतया क्षय कर दिया जाए, तो मानव केवलज्ञान की भूमिका तक पहुँच सकता है , जो ज्ञान की सर्वोच्च अनन्त, अक्षय भूमिका है ।
प्रस्तुत में हम मनुष्य की प्रारम्भिक स्थिति के सम्बन्ध में बात कर रहे हैं । मनुष्य जब माता के गर्भ में होता है, तब वह आहार, शरीर, इन्द्रिय आदि पर्याप्तियों को पूर्ण कर मन:पर्याप्ति तक पहुँच जाता है, उस समय उसकी ज्ञान
चेतना यदि क्षयोपशम विशेष से विशिष्टता प्राप्त कर ले, तो वह गर्भ में भी विस्मयजनक चिन्तन की स्थिति पर पहुँच जाता है । इतिहास में इसके अनेक उदाहरण उपलब्ध होते हैं ।
__ अन्तिम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर जब त्रिशला माता के गर्भ में थे, तो उन्होंने एक विशेष प्रसंग पर माता के शोक की वेदना को अनुभव किया,
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