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________________ है, मरती है, और दूसरों को भी मारती है। यह जिन्दा लाश हँसते-खेलते घर को जल्दी ही मरघट बना देती है। तुम जिन्दा लाश नहीं, जिन्दा शहीद बनो। शहीद, शीश हथेली पर रखे कर्मयुद्ध के अग्रिम मोर्चे पर जूझने वाला वीर सेनानी। तुम क्या नहीं हो? सब कुछ हो। मानव शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं औद्योगिक शक्तियों का ज्योति-स्तम्भ है। अत: वह अपनी कर्म की मंजिल क्यों नहीं पाएगा? अवश्य पाएगा। देर सवेर की बात मैं नहीं कहता। हाँ, यह अवश्य कह सकता हूँ कि जल्दी या देर कर्म का फल अवश्य मिलेगा। क्रिया की प्रतिक्रिया होगी ही। महावीर ने कहा था "सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला हवंति" - "अच्छे कर्मों का अच्छा फल होता ही है।" बात किनारे पर है। मेरे प्रिय आत्म बन्धुओं! भाइयों और बहनों! तुम सब कुछ न कुछ अच्छे से अच्छा आदर्श उपस्थित कर सकोगे। आगे बढ़ने योग्य, दौड़ने योग्य, संघर्ष करने योग्य शक्ति और धैर्य तुम में है। तुम अवश्य ही कुछ-न-कुछ अच्छा कर पाओगे, यदि सच्चे मन से, लगन से करना चाहोगे तो। परिस्थितियाँ बनती नहीं, बनाई जाती हैं। जमाना बदलता नहीं, बदला जाता है। तुम निर्माता हो, निर्मित नहीं हो। तुम कर्ता हो, कृति नहीं हो। राम, कृष्ण,महावीर और बुद्ध की सन्ताने दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनने के लिए हैं, उदाहरण बनने के लिए हैं। वे पीछे नहीं, आगे चलने के लिए हैं। व्यक्ति में, समाज में, राष्ट्र में, विश्व में तथा धर्म-परम्पराओं में, बड़ी तेजी से परिवर्तन आ रहा है। परिवर्तन के प्रवाह को कोई रोक नहीं सकता। वह प्रवाह है, अत: उसकी अग्रगति निश्चित है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि परिवर्तन की प्रतीक्षा में बैठा रहा जाए। परिवर्तन एक क्रिया है। हर क्रिया को कर्ता की अपेक्षा है। फिर भले ही वह कर्ता अन्दर में हो या बाहर में हो। अत: परिवर्तन का केवल द्रष्टा ही नहीं, कर्ता बनना भी आवश्यक है। याद रखो, तुम्हें परिवर्तन का नेतृत्व करना है। बदलाव का अलमबरदार होना है। मानव देहधारी कुछ ऐसे लोग भी हैं जो गन्दगी के कीड़े हैं। वे निन्दा की, दुरालोचना की गन्दगी पर ही जीवित रहते हैं। ये वे दुःशासन हैं, जो हर किसी सहृदय युधिष्ठिर की प्रतिष्ठा रूपी द्रौपदी को नंगा करने में ही अपनी शान समझते हैं। परन्तु आप इन लोगों को कुछ भी महत्त्व न दें। इनकी अनर्गल बातों पर भूल कर भी ध्यान न दें। गन्दगी के कीड़े क्षणजीवी होते हैं। उन्हें गन्दगी में मुँह गड़ाए ही मर जाना है, मिट्टी में मिल जाना है। हर दुःशासन (७८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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