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________________ मारोगे, तभी बजेगा न? वीणा है, किन्तु तारों को झनझनाओगे, तभी न झंकृत होगी वह ? मुख है, मुख में जीभ है, और वह स्वस्थ भी है, किन्तु जब बोलोगे, तभी तो स्वर गुंजित होगा न? यह न सोचो कि तुम में शक्ति नहीं है। शक्ति तो है, महावीर की भाषा में हर चैतन्य अनन्त-शक्ति का स्रोत है । परन्तु शक्ति को अभिव्यक्ति देनी होगी । अभिव्यक्ति दिये बिना कुछ नहीं होना जाना। बीज में वृक्ष होने की शक्ति तो है, परन्तु जब वह सुप्त शक्ति अभिव्यक्ति लेगी, तभी तो बीज में से सोया वृक्ष जगेगा, फूलेगा, फलेगा। समय निकला जा रहा है। निकला क्या जा रहा है, उडा जा रहा है प्रलय काल के झंझावात जैसा । देखना, यह लौट कर कभी भी न आएगा। समय का चक्र कभी घूम कर पीछे नहीं लौटता, वह निरन्तर आगे ही आगे घूमता जाता है। अत: कर्म में से कल को निकाल दीजिए। कल किसने देखा है? जो करना है, आज करना है। आज ही क्या, अभी करना है। मंगलमय सत्कर्म के लिए करने जैसी स्थिति हो, तो उसे कल पर छोडना, पाप है, महापाप है। समयोचित कर्तव्य की पूर्तिहेतु समय के सम्बन्ध में दिनकर सोनवलकर ने कहा समय सब को पीछे छोड़ता हुआ बढ़ जाता है आगे जिसमें हिम्मत हो दमखम हो वह समय के साथ भागे। क्यों, कैसे चुप हो? किसी का इन्तजार है क्या? कोई सहारा देनेवाला साथी चाहिए क्या? भले आदमी! सहारा किसका? जब तू ही अपने संकल्प को, कर्म को सहारा नहीं देता, तो दूसरा कौन सहारा देगा? क्या तू लूला है, लंगड़ा है, टूंटा है, अन्धा है, बहरा है, अपंग है, अपाहिज है, जो तुझे सहारा चाहिए? कौन किसको सहारा देता है? महावीर तो ईश्वर के सहारे की बात भी नहीं कहते । भक्ति-योग में हजार ईश्वरीय सहारे की बातें हों, किन्तु दार्शनिक चेतना-ज्योति से दीप्त कर्मयोग में ईश्वर का सहारा भी अनपेक्षित है। ईश्वर ही नहीं, तो फिर और कौन सा देवता है वह, जो तुझ चरणहीन अपंग को अपने सहारे खड़ा करेगा? महावीर कहते हैं "अप्पा कत्ता विकत्ता य" "हर आत्मा स्वयं ही कर्ता है, स्वयं ही विकर्ता है।" ईश्वर हो या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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