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मनोगत
परम पूज्य प्रज्ञामहर्षि राष्ट्रसंत उपाध्याय कविश्री अमर मुनिजी वीरायतन के प्रेरणा स्रोत हैं। आपने जैन, बौद्ध तथा वैदिक दर्शन साहित्य का तौलनिक गहन अध्ययन, मनन, चिंतन किया है। आप अनेकांत दर्शन के तत्त्वनिष्ठ उपासक हैं। आपका चिंतन सत्यानुलक्षी पूर्वाग्रह मुक्त तटस्थ वृत्ति का है। आपकी विचारधारा वैज्ञानिक है। आपने कहा है “परिवर्तन अनिवार्य है। नव सृजन की प्रक्रिया का परिवर्तन अनिवार्य अंग है। पाप पुण्य कर्म में नहीं भाव में है । महत्ता शब्द की नहीं भाव की है।"
गत अनेक वर्षों से 'अमर भारती' मासिक में 'चिन्तन के झरोखे से इस शीर्षक से अनेकविध विषयोंपर आपने अत्यंत मननीय और विचार प्रवर्तक लेखन किया है।
आधुनिक विचारवंत और खासकर युवा पीढी इन प्रज्ञानिष्ठ देश-काल- भाव के परिप्रेक्ष्य में निर्भीकतासे, सहज भावसे स्पष्टता से लिखे हुए विचारों से इतनी आकर्षित और प्रभावित है कि इन लेखों का संकलन प्रकाशित करने का आग्रह अनेक लोगोंद्वारा काफी समय से हो रहा है। इसलिये इस संकलन के प्रथम और द्वितीय खंड एक साथ प्रकाशित करने का वीरायतन ने तय किया।
मेरे मित्र श्री. त्र्यं. शि. उर्फ बालासाहेब भारदे महाराष्ट्र शासन के ५ वर्ष तक मंत्री रहे हैं और दस वर्ष तक विधान सभा के अध्यक्ष (स्पीकर) रहे हैं, महाराष्ट्र के प्रखर अध्यात्मवादी चिंतक और गांधी विचार के निस्सीम अनुयायी हैं। आपने इस प्रकाशन के लिये 'आमुख बहुत कम समय में अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर लिखने का अनुग्रह किया इस लिये वीरायतन की ओर से मैं उनका आभारी हूँ।
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