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जन-जीवन पर असत्य, दंभ, छल-कपट और भ्रष्टाचार आदि के काले बादल छाये हुए हैं । सत्य अंधेरी गलियों में मारा-मारा फिर रहा है उसे कोई पूछने वाला नहीं । पूछना क्या, कदम-कदम पर बुरी तरह ठुकराया जा रहा है । ठकुरसुहाती के युग में सत्य को भला कहीं कोई जगह मिल सकती है? नहीं मिल सकती है ।
दुनियादार लोग हैं, उनसे क्या आशा रखी जाए । परन्तु, खेद तो तब होता है, जब सत्य के नाम की माला जपने वाले धर्मगुरु भी सत्य की अवहेलना करते हैं । अनेक साम्प्रदायिक मान्यताएँ गलत हैं, गलत साबित हो चुकी हैं, परन्तु ये तथाकथित धर्म गुरु अब भी उन्हीं पुराने शब्दों में उनकी सत्यता के फूटे ढोल बजा रहे हैं । अब भी उनका चाँद, सूरज के ऊपर है । अब भी सूरज और चाँद ऊपर हैं, तारे नीचे हैं | अब भी लाख योजन का ऊँचा सोने का सुमेरु भूतल पर खड़ा है, जिसकी सूरज और चाँद दिन-रात परिक्रमा कर रहे हैं । अब भी उनके सूरज और चाँद के विमानों में हजारों अश्व, हाथी, सिंह और बैल जुते हुए हैं, जो अधर आकाश में बिना सड़क के ही उन्हें खींच रहे हैं। आज भी उनके स्वर्गीय विमानों की छतों में ६४ मन के मोती लटक रहे हैं । आज भी गंगा का पाट ( प्रवाह की चौड़ाई ) बासठ योजन का है, एक योजन चार हजार कोश का होता है । कहाँ बह रही है यह गंगा ? मत पूछो, शास्त्र में लिखा है न ? स्पष्ट है यह गंगा भूतल पर नहीं, शास्त्र के शब्दों में बह रही है । आज भी उनकी भूगोल विद्या में पृथ्वी स्थिर है और सूरज पूरब-पश्चिम घूम रहा है | वैज्ञानिकों द्वारा अओं की लागत से तैयार किए गए उपग्रह चांद पर नहीं, पृथ्वी के ही किसी पहाड़ पर उतरे हैं और उसी के चित्र भेजते हैं। चाँद पर से वापस लौटे हुए प्रत्यक्ष द्रष्टा आदमी भी इनकी नजरों में पागल हैं, निरे बुद्धू हैं, जो चाँद पर उतरने की बात कहते हैं। विद्युत् एक अदृश शक्ति है, पर वह आज भी इनके दिमाग में आग है और इन्हें ध्वनिवर्द्धक-माईक पर बोलने से इन्कार करती है । प्रत्यक्ष में ही कितना झूठ बोला जा रहा है, इसकी सत्य के महाव्रती इन धर्म गुरुओं को कोई चिन्ता नहीं है । यह बात नहीं कि इनमें से कुछ महानुभाव सही स्थिति समझते नहीं हैं । समझते हैं, पर स्पष्ट कुछ कह नहीं सकते । क्यों नहीं कह सकते ? यश के लोभी हैं ये । प्रतिष्ठा चाहिए इन्हें । हर कीमत पर वाह-वाह | प्रतिष्ठा को जरा भी कहीं चोट लग जाए, कि बस ये मरे ! इनका सत्य अपने तथाकथित संप्रदायों का सत्य है, अपनी मान्यताओं का सत्य है । यथार्थ सत्य से इन्हें
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