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________________ आपने वाहन प्रयोग के कारण कुछ समस्याएँ उपस्थित होने की चर्चा की है | हो सकती हैं समस्याएँ । समस्या-शून्य जीवन ही क्या ? जब समस्याएँ आएँगी, तो उनका तत्कालीन समाधान भी किया जाएगा | वर्तमान का समाधान वर्तमान में और भविष्य का भविष्य में | आज का भोजन कल शौच जाने के लिए मजबूर कर देता है । इस पर आज का भोजन तो नहीं छोड़ा जाता । आज का पहना वस्त्र कल मैला होगा, तो क्या वस्त्र न पहना जाए, नंगा ही रहा जाए । वाहन की चर्चा मैं यों ही लम्बी कर गया हूँ। आपने प्रश्न छेड़ा तो उत्तर लंबा हो गया । आप मिलेंगे, तब खुलकर चर्चा कर लेंगे | फिलहाल साधु के द्वारा वाहन प्रयोग के सम्बन्ध में मेरे मन-मस्तिष्क में कोई प्रश्न नहीं है । वाहन संबंधी मुख्य प्रश्न है साध्वी संघ के लिए । गाँवों के लम्बे विहारों में असुरक्षित साध्वी-वर्ग की, आज के बिगड़े हुए माहौल में क्या बुरी गत हो सकती है, यह सोचते ही काँप जाता है मेरा मन । कोई भी संवेदनशील मानव हृदय अवश्य कांप जाएगा, आज की सामाजिक दु:स्थिति पर | आज का प्रायः हर समाचार पत्र, मातृ-जाति का अपहरण, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और तदनुसार हत्याओं की दिल दहलाने वाली खबरों से कलंकित रहता है । समाचार पत्रों के सिवा आए दिन जनमुख से सुनते भी यही है | गाँवों में साध्वी-वर्ग की सुरक्षा का क्या प्रबन्ध है, समाज की ओर से ? अमर भारती में इस सम्बन्ध में जो मेरा लेख है, वह ऐसे ही नहीं लिखा गया और छापा गया। वह लेख एक वर्ष तक तो स्थिति में सुधार होने की आशा में यों ही पड़ा रहा । अन्तत: कुछ ही हेर-फेर न हुआ, तभी मैंने उसे प्रकाशन की भूमिका दी । बलात्कार की घटनाएँ साधारण नहीं हैं । संसद तक में उनकी गूंज पहुँच गई हैं और अलग से एक नया कानून बनाने तक की नौबत आ गई है और इस भीषण स्थिति में भी हम एक परंपरा से चिपटे हुए हैं और सामने उपस्थित भयंकर समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं । यह हमारा बौद्धिक दिवालियापन नहीं तो क्या है ? मैं ही नहीं, इस सम्बन्ध में श्रमण-संघ के युवाचार्य श्री मधुकरजी ने भी जैन प्रकाश और तरुण जैन आदि में विहारों में साध्वी-वर्ग की रक्षा के लिए अपील की है । उनकी एक विशिष्ट साध्वी श्री उमरावकुंवरजी क्षेत्र दूर होने के कारण सन्ध्या समय जंगल में ही कहीं ठहर गई। आ गया सशस्त्र बदमाशों का दल | वह तो खैर हुई कि योगानुयोग पुलिस दल की जीप आ गई । बदमाश भाग गए। अन्यथा, लूटमार और शीलभंग जैसा (२३९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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