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यही कारण है कि निराश, हताश, उदास व्यक्ति को न आशा होती है और न धैर्य । वह जल्दी ही अधीरता को शिकार हो जाता है, और इस प्रकार अपनी हत्या खुद आप कर लेता है । न वह अपना होता है, न दूसरों का । किसी का भी कुछ नहीं होता । मिट्टी के ढेले का तो कुछ मूल्य होता है । पर उसका एक कानी कौड़ी का भी मूल्य नहीं होता । जो अपनी नजरों में खुद गिर जाता है, वह दूसरों की नजरों में क्यों नहीं गिरेगा दूसरों की नजरों में गिरने से पहले आदमी खुद अपनी नजरों में गिरता है । स्वयं स्वयं को अपमानित करता है, ठुकराता है । अतः हर व्यक्ति के लिए यह सूत्र ध्यान में रखने जैसा है । रखने जैसा क्या, रखना ही है नर हो, न निराश करो मन को ।”
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नया वर्ष आशा का नया सन्देश लेकर आ रहा है । पिछला वर्ष जैसा भी था गुजर गया, चला गया। अब उस गुजरे हुए वर्ष के विकल्पों में मन को उलझाये रखने से कोई लाभ नहीं है । नया साहस, नयी उमंग, नया रंग लेकर जीवनपथ पर आगे बढ़ो । संभव है, कुछ दूर कांटों में चलना पड़े । पर आगे देखना, पथ पर फूल भी बिछे पड़े हैं । नये वर्ष के स्वर्णिम प्रभात में सुन्दर भविष्य की स्वर्णिम किरणें भी जग मगा रही हैं । जहाँ स्वर्णिम एवं मोहक आशा है, कुछ न कुछ अच्छा करने का सपना है, वहाँ स्वर्ग की दिव्यता के अवतरण में कोई देर नहीं है । अगर देर है भी तो अन्धेर तो बिल्कुल नहीं है | मंगलमय अनन्त ज्योति: स्वरूप अपने महा प्रभु का स्मरण करो और जीवन रथ को कर्म के पथ पर दौड़ा दो । जो होगा, अच्छा ही होगा, उस राजस्थानी भक्त के शब्दों
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“ अर्जुन रथ को हाँक दे, भली करेंगे श्याम ।”
सुन्दर कर्म से निर्मित होने वाले सुन्दर भविष्य के सपने देखते रहो देखते रहो, अपने आराध्य को याद करते रहो करते रहो । प्रभु के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पण करने वाले कर्मयोगी आशावादी भक्तों का हर दिन उत्सव का दिन होता है, और हर रात्रि सत्यं शिवं सुन्दरं की रात्रि होती है ।
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शिवमस्तु सर्व जगत:
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परहितनिरता भवन्तु सत्त्वगणाः ।
दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवतु लोकः ||
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