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________________ दिमाग पर कुर्सी का अहं जो सवार है । कुर्सी यश नहीं देती है । कुर्सी पर से किये जाने वाले सेवा - सत्कर्म ही यश देते हैं । यह बात हर कुर्सी पर बैठने वाले को ध्यान में रखने जैसी है । त्याग का अहं भी त्याज्य भगवान महावीर का तो ' अहम्' के सम्बन्ध में बहुत गंभीर सिद्धान्त है । भगवान तो जातिमद, कुलमद, रूपमद, ऐश्वर्य मद आदि संसारी मदों के समान ही श्रुत एवं तप आदि के धार्मिक मद को भी त्याज्य बताते हैं । त्याग का मद भी डुबा देनेवाला है । कुछ लोग अपने उत्कृष्ट तप नियम, त्याग आदि का भी मद करते हैं कि हम कितने उग्र आचारी हैं, कितने कठोर तपस्वी हैं । उन्हें बोध नहीं है कि यह विष भी बड़ा भयंकर है । महाभारत का राजा ययाति हजारों वर्ष तप करता रहा, जल पीकर, हवा खाकर रहा । महीनों ही एक टाँग से अधर में खड़ा रहा । किन्तु जब स्वर्ग में गया, और अपने मुख अपने तप-त्याग का बखान करने लगा तो उसका तत्काल स्वर्ग से पतन हो गया । जैन पुराणों के भी अनेक त्यागी अपने उत्कृष्ट त्याग का अहम् करने के कारण वीतराग पथ से भ्रष्ट हो गए । अहम्' बन्धन है, फिर भले ही वह किसी भी तरह का हो । 2 जैन आगमों में जिनकल्प का वर्णन है । जिनकल्पी मुनि बड़े ही उग्र तपस्वी, संयमी एवं कठोरव्रती होते हैं । वे रोग होने पर उसका उपचार नहीं कराते । शिष्य नहीं बनाते । कैसी भी दु:खद स्थिति हो, किसी से तनिक भी सेवा नहीं लेते । पैर में लगा कांटा तो क्या निकालेंगे । आँख में पड़ा धूल का कण भी नहीं निकालते, भले ही त्याग के इस हठ में आँख ही क्यों न चली जाए। सर्दी, गर्मी और वर्षा कुछ भी हो, दंशमशक का कितना ही क्यों न उपद्रव हो, हमेशा निरावरण नंगे तन रहते हैं । वन में क्रूर जंगली हिंसक जानवरों से भी अपने को बचाने का प्रयत्न नहीं करते । इतना कठोर आचार है । फिर भी आगम कहते हैं-" जिनकल्पी को केवल ज्ञान नहीं होता, अतः मोक्ष भी नहीं होता । केवल ज्ञान होता है कल्पातीत स्थिति में । जब की साधक कल्प के अर्थात् आचार के कर्तृत्वसम्बन्धी अहम् से मुक्त हो जाता है, त्याग तप सब कुछ करके भी त्याग तप से परे सहज आत्मभाव में लीन हो जाता है, तभी अनन्त " Jain Education International (१४९) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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