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भविष्य उसके अपने वर्तमान में है | वर्तमान में जैसा भी कर्म करता है, भविष्य में उसका वैसा ही फल पाता है । वर्तमान का कर्म बीज है, भविष्य के भाग्य-वृक्ष का । अस्तु, आकाश के सितारों में क्या देखना है ? ज्योतिषी के लम्बे-चौडे कागजी पंचांगों में भी क्या देखना है? जो भी शुभाशुभ देखना है, वह देखो हर क्षण अपने शुभाशुभ कृत आचरण में । कदाचार विषबीज है, तो सदाचार अमृत बीज है । संसार में और कोई बात भले ही असत्य हो जाए, परन्तु कर्म के शुभाशुभ का सत्य कभी झूठा नहीं होता है । यह साक्षियों का सत्य नहीं, अनुभवों का सत्य है । साक्षी भी चाहिए तो राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध आदि सैकड़ों ही महामानव एक से एक महान साक्षात् द्रष्टा साक्षी हैं । श्रोता साक्षी से द्रष्टा साक्षी अधिक प्रामाणिक होता है | विश्व के अनेक विराट पुरुषों ने भाग्य का मूल कर्म में देखा है । आज का अच्छा-बुरा कर्म ही, आज का खरा-खोटा आचरण ही, कल का शुभाशुभ भाग्य बनता है ।
कुछ भी हो, सत्कर्म को न भूलना । विघ्न आ सकते हैं, बाधाएँ घेर सकती हैं, यश और अपयश की घटाएँ बरस सकती हैं, मान और अपमान की आंधियाँ झकझोर सकती हैं, परन्तु मानव, तू सत्कर्म के यात्रापथ पर वज्र कदमों से बढ़ता जा । न कभी पीछे हटना, न अगल-बगल में होना और न कहीं रुकना, न कहीं थककर बैठना | सफलता दिव्य शक्ति की विचित्र प्रकृति की देवी है । वह कड़ी-से-कड़ी परीक्षा में अच्छे यशस्वी नम्बरों से पास होने के बाद ही मानव का वरण करती है ।
- उद्योगी कर्मयोगी के चरणों में ही ऐश्वर्य नत-मस्तक होता है । विजयश्री उसे ही मिलती है । अत: दैववाद के चंगुल से मुक्त होकर कर्मवाद की उपासना करो । दैव और भाग्य आलसी, निष्क्रिय और निकम्मे लोगों के शब्द-घोष हैं । उत्साही, कर्मठ और साहसी वीर सत्कर्म के पुजारी होते हैं । कोई कुछ भी कहे, वे नि:संकोच, बिना किसी झिझक और ठिठक के अपने पूर्व सुविचारित और पश्चात् निर्धारित कर्म-पथ पर चलते ही रहते हैं । ' आरब्धस्यान्तगमनम्' उनका चिन्तनसूत्र है | जो शुरू किया है, उसे पूरा करना है, किसी भी कीमत पर ।
आपका विगत वर्ष कैसा गुजरा है, यह मुझे नहीं पूछना है। अच्छा गया है, तो बहुत अच्छी बात । उससे प्रेरणा लेकर प्रस्तुत वर्ष को उससे भी
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