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________________ आचार का अवलम्ब करते हुए कालबाह्य उपचार नहीं है, जैन धर्म के प्रवक्ता होते हुए भी संकुचित अभिनिवेश का लवलेश नहीं है, सर्वोपरि आत्मशान्ति की साधना में समाज क्रान्ति का अनादर नहीं है। यह है अमर मुनिजी का दिव्य विभूतिमत्व | दिव्यता एवं मानवता का संगम ही साधुता है। यही साधुता ज्ञान व ध्यान द्वारा शिष्य - साधकों को प्रतीत होती ही है, बल्कि सामान्य पाठकों को भी इस साधुता की प्रतीति हर पृष्ठ में प्राप्त होती है। ऐसा है यह अपूर्व ग्रन्थ । जन को सज्जन बनाने में ही संस्कार होते हैं, सज्जन को साधक बनाने का नाम है दीक्षा। ये दोनों बातें आज भी सभी धर्मों में मौजूद हैं। इन्हीं के कारण व्यक्तिगत भाव शक्ति जिस प्रकार वृद्धिंगत होती है, उसी प्रकार सामाजिक प्रभाव शक्ति की अनुभूति नहीं होती। तब मानव धर्म किस प्रकार प्रभावित होगा ? इसीलिए साधक सेवक बने यही सन्त-मुनियों का उपदेश है। परन्तु वर्तमान समय में इतने मात्र से काम नहीं चलेगा। अत: साधक सेवकों को क्रान्तिकारक बनना होगा। यही आध्यात्मिक मानवता का आज का युगधर्म है। इसी युगधर्म की पुकार - ललकार ही अमर मुनिजी की अमर भारती है। किसी भी धर्मानुयायी, किसी भी वृत्ति के सत्प्रवृत्त पाठक को अमर मुनिजी की यह वाणी एक साथ ही भाविक, चिकित्सक, साधक एवं सेवक बना पाएगी, ऐसी क्षमता इस ग्रन्थ की है ! पुणे, २२ जून १९८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only त्र्यं. शि. भारदे ... ९ www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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