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________________ ६२ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ तो लाठी उठाकर खड़ा ही गया, सामना करने के लिए । क्रूर चोर ने एक हो चोट में ब्राह्मण को मौत के घाट उतार दिया । ब्राह्मण की भयंकर चीख से ब्राह्मणी भी नींद से हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई । वह गर्भवती थी । ब्राह्मण को मरा देख वह जोर से चिल्लाई । दुष्ट चोर ने एक ही झटके में ब्राह्मणी के भी दो टुकड़े कर डाले । ब्राह्मणी धड़ाम से धरती पर गिरी, तो धक्के से उसका कच्चा गर्भ भी भूमि पर बाहर आ गिरा और कुछ ही क्षणों में मर गया । एक ओर गाय के टुकड़े पड़े हैं । दूसरी ओर ब्राह्मण का मृत शरीर रक्त से लथपथ है । इधर ब्राह्मणी का धड़ कहीं पड़ा है, तो सिर कहीं ! मांसपिंड के रूप में भ्रूण का दृश्य तो ऐसा बीभत्स कि उस ओर देखा ही नहीं जा सकता था । चारों ओर खून की धाराएँ बह रही थीं । दृढ़-प्रहारी ने यह दृश्य देखा, तो उसका पत्थर-सा हृदय भी एक बारगी 'धक-धक' कर उठा । यह भयंकर दृश्य उसके हृदय को कचोटने लगा । आखिर, मनुष्य का हृदय था । करुणा की हल्की-सी लहर से वह सिहर उठा । मनुष्य अंधा होकर पाप कर लेता है, पर जब आँख खोल कर उस पाप के परिणाम को देखता है, तो स्वयं उस पर आँसू बहाकर कभी सिसक भी उठता है । दृढ़ प्रहारी का हृदय रो पड़ा, अपने कृत पाप पर उसे घृणा हुई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001291
Book TitleJain Itihas ki Prerak Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1987
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, N000, & N035
File Size4 MB
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