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________________ प्रकाशकीय जैन कथा-साहित्य माला का तृतीय भाग 'जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता है । जैन इतिहास व परम्परा से सम्बन्धित कथाओं की मांग आज निरन्तर बढ़ती जा रही है । पाठक कथा-साहित्य को बहुत ही रुचि व चाव से पढ़ते हैं । महिलाएँ, विद्यार्थी व साधारण पाठक आदि की मांग को देखते हुए हमने जैन साहित्य-कथा-माला का प्रकाशन प्रारम्भ किया है। माला का यह तीसरा मनका है। पिछले दोनों मनके जब से पाठकों के हाथों में पहुंचे हैं, पाठक - वर्ग को उनसे संतोष ही नहीं, बल्कि उसकी कथा-साहित्य के अध्ययन की रुचि भी अधिक तीव्र हुई है, ऐसा हम पाठकों के पत्रों पर से कह सकते हैं। थद्धय उपाध्यायश्रीजी के विचारों में जो सहज स्पष्टता और महान् प्ररणा रहती है, उससे जैन - समाज का पाठक तो आकृष्ट है हो, साथ ही जैनेतर पाठक भी बहुत अधिक आकृष्ट हो रहे हैं, यह प्रसन्नता की बात है। और, इसीका परिणाम है कि स्वल्प समय में ही प्रस्तुत पुस्तक का चतुर्थ संस्करण प्रकाशित कर रहे हैं । कथा-माला के सम्पादन में श्री श्रीचन्द सुराना 'सरस' का जो सहयोग है, वह तो सहज आत्मीय है, उसके लिए औपचारिक धन्यवाद प्रदर्शित करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है। आशा है पिछले भागों की तरह इस भाग को भी पाठक उसी उत्साह और रुचि के साथ पढ़ेंगे। मंत्री सन्मति ज्ञान-पीठ, आगरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001291
Book TitleJain Itihas ki Prerak Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1987
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, N000, & N035
File Size4 MB
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