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दृढ़ प्रहारी : दृढ़ आचारी
सेठ रहता था । उच्छृंखल और
माकंदी नगरी में समुद्र नाम का एक उसके दत्त नाम का पुत्र था । दत्त बड़ा ही क्रू रा प्रकृति का व्यक्ति था । बालकों के साथ जब वह खेलता, तो बात-बात में उनसे झगड़ पड़ता, लड़ पड़ता और बड़े दृढ़ प्रहार से उन्हें मारता । चूँकि बह बलवान एवं हृष्ट-पुष्ट था, इसलिए सब बच्चे उससे डरते थे । कड़ी मार (दृढ़ प्रहार) करने की आदत होने से लोग उसे दत्त न कह कर 'दृढ़- प्रहारी' कहने लग गए ।
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दृढ़-प्रहारी बड़ा हुआ, तो उसकी उच्छृंखलता पड़ौसी और मुहल्ले वालों के लिए भी सिर दर्द बन गई । वह अपने अहं में इतना डूबा रहता कि किसी की कुछ भी नहीं सुनता था । लोगों ने राजा से शिकायत की। राजा ने उसके पिता को 'बुलाकर उसे अपने दुष्ट एवं उच्छृंखल लड़के को शिक्षा देने के लिए कहा । सेठ दत्त को समझाकर हार गया, पर वह चिकना - चुपड़ा मल्ल था, उस पर पिता की किसी भी शिक्षा का कोई असर नहीं हुआ। जो बचपन से ही कुसंगति
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