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जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ क्या धर्म बताया ? उपशम ! क्या अर्थ हुआ उपशम का ? उपशम- अर्थात क्रोध को शान्ति ! मन की शीतलता ! ओह ! मेरे मन में तो कब से क्रोध की आग जल रही है ! एक निरपराध कुमारी के खून से सनी तलवार मेरे क्रोध का प्रचण्ड रूप लिए कितनी भयानक लग रही है ? हाथ में खून की प्यासी तलवार है, तो उपशम कैसा ?" वह उपशम के विचार में गहरा उतरा और झट से उसने तलवार फेंक दी। ___"मुनि ने दूसरा धर्मसूत्र बताया है- विवेक ! बड़ा गम्भीर अर्थ है इसका ! कृत्य-अकृत्य का विवेक ! भलाई - बुराई का ज्ञान । विवेक का द्वार खुले बिना धर्म हृदय में प्रवेश ही नहीं कर सकता ! मुझ में कहाँ है विवेक ? नग्न क्रूरता का प्रतीक यह स्त्री का रक्त-प्लावित मुंड तो हाथ में लिए खड़ा हूँ। छि: कैसा विवेक ?" उसने हाथ को एक झटका दिया, और सुषुमा का वह मुंड दूर जा गिरा।
आँख मूंदे वह विचारों की गहराई में अधिकाधिक उतरता जा रहा था। विचार के ज्योतिर्मय स्फुलिंग नया प्रकाश देने लगे। अब संवर पर उसका चिन्तन टिका । "ओह, संवर ! कितना महान् वाक्य कहा है मुनि ने ! मैं स्वेच्छाचारी, असंयत ! कहाँ है संवर का विचार ? संवर अर्थात् संयम ! मन का संयम, वचन का संयम, कर्म का संयम-यही तो है संवर की साधना ! अपने आपको संयम में उतार दू, तभी तो धर्म उतरेगा हृदय में।" वह विचार
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