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क्षमा का आराधक
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भूख उसे बहुत लगती थी। भूख के कारण रात निकालनी भी उसको मुश्किल हो जाती। प्रातः सूर्योदय होते ही एक गडुक (प्राचीन काल का एक माप) भर कर (भात) ला कर, जब पेट में डाल लेता, तभी कुछ शान्ति मिलती। मुनि के इस नित्य प्रति के भोजन व्यवहार से लोगों ने उन्हें परिहास में 'कूर गडुक' नाम से पुकारना शुरू कर दिया।
___ एक बार आचार्य का संघ चम्पा नगरी में पहुंचा। उस समय धर्म - संघ में चार बहुत बड़े तपस्वी थे। पहले तपस्वी मुनि एक-एक मास का तप करते थे। दूसरे दो- दो मास का, तीसरे तीन-तीन मास का और चौथे चार चार मास का दीर्घ तपश्चरण करते थे । ये तपस्वी 'कूर गडुक' के प्रातः होते ही नित्य प्रति भोजन करने के व्यवहार पर उपहास करते रहते । कहते-'कैसा भोजन भट्ट है ? अष्टमीचतुर्दशी को उपवास तो क्या, एक पौरुषी (प्रहर) तक भी भूख नहीं सह सकता ? वे मुनि कूर-गडुक को 'नित्य भोजी' कहकर व्यंग्य कसते रहते थे। किन्तु, कूर - गडुक मुनि कटु वचन एवं व्यंग्य सुनकर भी क्रुद्ध नहीं होता था। वह स्वयं को अन्दर-ही-अन्दर टटोलने लगता- "वास्तव में ये मुनि ठीक ही कह रहे हैं । मैं तप करने में बहुत ही कमजोर हूँ। धन्य है इन्हें, जो मास - क्षपण आदि की इतनी कठोर दीर्घ तपः साधना निरन्तर करते रहते हैं।"
एक बार शासनदेवी ने अनेक तपस्वी एवं विद्वान संतों
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