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________________ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएं कुलपुत्र की तलवार नीचे झुक गई। वह विचार - मग्न हो गया - "माँ ठीक तो कह रही है । क्रोध तो राक्षस है, यह सफल हुआ तो विनाशलीला के अतिरिक्त और क्या करेगा ? बाहर के निरीह शत्रु को मारने से क्या ? इस अन्दर के राक्षस को ही मारना चाहिए ।" कुलपुत्र का सद्विवेक जगा, तो क्रोध शान्त हो गया । जो तलवार हत्यारे का खन पीने के लिए लपलपा रही थी, उसी तलवार से उसके बंधन काटकर उसे मुक्त कर दिया । हत्यारा कुलपुत्र के चरणों से लिपट गया । कुलपुत्र ने उसे भाई की तरह स्नेह से उठालिया और प्रेमपूर्वक एक ही थाली में अपने साथ खिला - पिलाकर विदा किया । उत्तराध्ययन, अध्य० १ ( कमलसंयमी टीका ) ३२ Jain Education International 10) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001291
Book TitleJain Itihas ki Prerak Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1987
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, N000, & N035
File Size4 MB
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