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वह क्रोध को पी गया
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करने का हौसला ही न होने दे। वह तो हमला होने से पहले ही उस पर शेर की तरह झपट पड़े । और, शत्रु के आक्रमण करने पर भी जो शत्रु का सामना न कर सके, उसे पकड़कर शिक्षा न दे सके, वह क्षत्रिय नहीं, कायर होता है।"
क्षत्रिय, और उस पर कायर होने का लांछन ! कुलपुत्र का खून उबल पड़ा। उसके अन्दर का सुप्त क्षत्रियत्व गर्ज उठा। मां के चरण छुए, शपथ ली कि-"माँ, अब तो बन्धुघातक को पकड़कर ही दम लूगा । तुम्हारे सामने लाकर उसका सिर इसी तलवार से उड़ा दूं, तब समझना कि मैंने असली क्षत्रियाणी मां का दूध पिया है।"माँ ने पुत्र की पीठ थपथपाई । कुलपुत्र हत्यारे की खोज में निकल पड़ा ।
गांव, नगर, जंगल और पहाड़ों में कुलपुत्र हाथ में नंगी तलवार चमकाता हुआ घूमने लगा। उसके रौद्र रूप को देख कर खखार शेर भी सहम गए । बड़े-बड़े वीरों के कलेजे भी धक-से रह गए । एक तरह से धरती का चप्पा - चप्पा खोज डाला, किन्तु हत्यारा नहीं मिला, सो नहीं मिला।
कुलपुत्र को घूमते-घूमते बारह वर्ष बीत गए । क्रोध का नशा फिर भी नहीं उतरा । उसे न खाने की सुध थी, न पीने की । जब तक भाई के हत्यारे को पकड़ न ले, उसे चैन कहाँ? आखिर एक दिन शत्रु उसकी नजर में चढ़ ही गया। बाज जैसे चिड़िया पर झपटता है, बिल्ली जैसे चूहे को दबोच लेती है, कुलपुत्र पूरे बल से हत्यारे पर टूट पड़ा, और पकड़ कर
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