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तीन गाथाएँ
नगर के बाहर अमुक कुंभकार के घर पर ठहरे हैं। एक योग भ्रष्ट राजा पुनः राजसिंहासन पर बैठे, इससे तो विशाला की उज्ज्वल राज-परम्परा का गौरव कलंकित हो जाएगा । और फिर राज्य-च्युत होने के बाद आपके शौर्य और पराक्रम का भी क्या मूल्य रहेगा ? क्षत्रिय का राज्य-च्युत हो जाना मृत्यु से भी बढ़कर है। इसलिए सोचिए, क्या किया जाए ? मैं इसीलिए आपकी सेवा में आया हूँ कि जैसे भी हो, रात-हीरात में ही इस महान् संकट का प्रतिकार कर देना चाहिए। अन्यथा प्रातः राजर्षि नगर में आएँगे, राज्य मांगेंगे । और हो सकता है, जनता में विद्रोह भी फैला दें। राज्य में गृह - युद्ध खड़ा हो जाने पर आप कहीं के भी न रहेंगे।"
मन्त्री की कपटपूर्ण बातों में राजकुमार बहक गया। कुछ क्षण तो उसे विश्वास नहीं हुआ, किन्तु मन्त्री का कपट इतना गूढ़ था कि उसके चेहरे पर उसकी झलक भी नहीं थी, वही गम्भीरता और राज - भक्ति का ढोंग ! राजकुकार ने कहा-"मन्त्रिराज! आप ही बतलाइए, इस संकट से राज्य की किस प्रकार रक्षा की जाए ?"
मन्त्री बोला-"महाराज ! राज्यसत्ता को हड़पने की कोशिश करने वाला चाहे भाई हो, पुत्र हो, या पिता हो, वह राज्य का शत्रु है । और, शत्रु के लिए क्षत्रिय की तलवार ही अन्तिम फैसला करती है।"
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