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३० ]
तिलोयपण्णत्ती
[१. २०३
सोहम्मीसाणोवरि छ च्चेय रज्जूउ सत्तपविभत्ता । खुल्लयभुजस्स रुंदं इगिपासे होदि लोयस्स ॥ २०३
माहिदउवरिमंते' रज्जूभो पंच होंति सत्तहिदा । उणवण्णहिदस्पेढी सत्तगुणा बम्हपणधीए ॥ २०४
कापिट्ठउवरिमंते रज्जूओ पंच होंति सत्तहिदा । सुक्कस्स उवरिमंते सत्तहिदा तिगुणिदो रज्जू ॥ २०५
सहसारउवरिमंते सगहिदरज्जू य खुल्लभुजदं । पाणदउवरिमचरिमे छ रज्जो हति सत्तहिदा ॥ २०६
पणिधीसु आरणच्चुदकप्पाणं चरिमइंदयधयाणं । खुल्लयभुजस्स रुंदं चउ रज्जूओ हवंति सत्तहिदा ॥ २०७
सोहम्मे दलमुत्तों पण रज्जूभी हवंति तिण्णि बहि । तम्मिस्सपुव्वसेस तेसीदी अपविहत्ता ॥ २०८
६१ + १८३ = २४३, २४३ ४ ४ = ९८; ९८ + ४९ = १४७ रा. बराबर ३४३ x ३७ रा.
सौधर्म और ईशान स्वर्गके ऊपर लोकके एक पार्श्वभागमें छोटी भुजाका विस्तार सातसे विभक्त छह राजुप्रमाण है ।। २०३ ।। (६)
___ माहेन्द्र स्वर्गके ऊपर अन्तमें सातसे भाजित पांच राजु और ब्रह्मस्वर्गके पास उनचाससे भाजित और सातसे गुणित जगश्रेणीप्रमाण छोटी भुजाका विस्तार है ॥२०४॥
मा. कल्प रा. ४; ब्र. कल्प. ज. श्रे. १९४७ = ४६ = रा. १.
कापिष्ठ स्वर्गके ऊपर अन्तमें सातसे भाजित पांच राजु, और शुक्रके ऊपर अन्तमें सातसे भाजित और तीनसे गुणित राजुप्रमाण छोटी भुजाका विस्तार है ।। २०५॥
का. रा. शु. रा. छ ।
सहस्रारके ऊपर अन्तमें सातसे भाजित एक राजुप्रमाण और प्राणतके ऊपर अन्तमें सातसे भाजित छह राजुप्रमाण छोटी भुजाका विस्तार है ॥२०६ ॥ स. रा. १, प्रा. रा. ।
आरण और अव्युत स्वर्ग के पास अन्तिम इन्द्रक विमानके ध्वज-दण्डके समीप छोटी भुजाका विस्तार सातसे भाजित चार राजुप्रमाण है ॥२०७॥ आ. अ. रा. ४.
सौधर्मयुगलतक त्रिकोण क्षेत्रका धनफल अर्ध राजुसे कम पांच घनराजुप्रमाण है । ( सनत्कुमारयुगलतक बाह्य और आभ्यन्तर दोनों क्षेत्रोंका मिश्र धनफल साढ़े तेरह धनराजुप्रमाण है । ) इस मिश्र घनफलमेंसे बाह्य त्रिकोण क्षेत्रका घनफल [ २.५ ] कम कर देनेपर शेष आठसे भाजित तेरासी घनराजुप्रमाण अभ्यन्तर क्षेत्रका घनफल होता है ॥२०८ ॥
२ द ब मेत्तं.
३ द उणवण्ण हिदा रज्जू,
४ द ब दलजुत्ता.
३। ५ द व तेसिं इदि. ६ब पविहत्या.
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