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________________ -४. २७६६ ] उत्थो महाधियारो [ ४९७ पणदालवखसंखा सूई अब्भंतरम्मि भागम्मि । णवचउदुखतिदु चउगिअंककमेणेवं परिहिजोयणया ॥ २७६० ४५००००० | १४२३०२४९ । सूजीए कदिए कदि दहगुणमूलं च लद्ध चउभजिदं । समवट्टवसुमईए हवेदि तं सुहमखेत्तफलं ॥। २७६१ भएकपंचदुगसग दुगसगसगपंचतिदुखछक्केका । अंककमे खेत्तफलं मणुसजगे सेलफलजुत्तं ।। २७६२ १६०२३५७७२७२५१० । दुगुणा सूजीए दोसुं वासो विसोधिदस्य कदी । सोज्झस्सै चउभागं वग्गिय गुणियं च दसगुणं मूलं ॥। २७६३ सत्तखणवस तेक्का छच्छक चउक्कपंचचउएकं । अंककमे जोयणया गणियफलं माणुसुत्तरगिरिस्स ॥। २७६४ १४५४६६१७९०७ । उवरिम्मि माणुसुत्तरगिरिणो' बावीस दिग्वकूडाणिं । पुण्वादिचउदिसासुं पत्तेक्कं तिष्णि तिष्णि चेटुंति ।। २७६५ वेलियम सुमगभा सडगंधी तिष्णि पुग्नदिन्माए । रुजगो लोहियभंजणणामा दक्खिणविभागम्मि ॥। २७६६ अभ्यन्तर भाग में इस पर्वतकी सूची पैंतालीस लाख योजन और परिधि अंककमसे नौ, चार, दो शून्य, तीन, दो, चार और एक, इन अंकोंसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन है || २७६० ॥ अभ्यन्तरसूची ४५००००० । परिधि १४२३०२४९ यो. । सूचीके वर्ग के वर्गको दशसे गुणा करके उसके वर्गमूलमें चारका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना समान गोल क्षेत्रका सूक्ष्म क्षेत्रफल होता है || २७६१ ॥ २ शून्य, एक, पांच, दो, सात, दो, सात, सात, पांच, तीन, दो, शून्य, छह और एक, इन अंकों के क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजनप्रमाण मानुषोत्तरपर्वतके क्षेत्रफलसहित मनुष्यलोकका क्षेत्रफल है | २७६२ ॥ ( ४५०२०४४ ) x १० ÷ ४ = १६०२३५७७२७२५१० । दुगुणित बाह्यसूचीमेंसे दोनों ओरके व्यास को घटाकर जो शेष रहे उसके वर्गको शोध्य राशिके चतुर्थ भागके वर्गसे गुणित करके पुनः दशगुणा कर वर्गमूल निकालने पर [ वलयाकार क्षेत्रका ] क्षेत्रफल आता है || २७६३ ॥ सात, शून्य, नौ, सात, एक, छह, छद्द, चार, पांच, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजनप्रमाण मानुषोत्तरपर्वतका क्षेत्रफल है ॥। २७६४ ॥ √ { ( ४५०२०४४ × २ ) - ( १०२२x२ ) } २०४४२ X २ × १० = १४५४६६१७९०७ । इस मानुषोत्तर पर्वतके ऊपर बाईस दिव्य कूट स्थित हैं । इनमें पूर्वादिक चारों दिशाओंमेंसे प्रत्येक में तीन तीन कूट हैं ।। २७६५ ॥ इनमेंसे वैडूर्य, अश्मगर्भ और सौगन्धी, ये तीन कूट पूर्वदिशामें तथा रुचक, लोहित और अंजन नामक तीन कूट दक्षिण दिशाभाग में स्थित हैं ॥ २७६६ ॥ १ द ब कमेणेण. TP 63. Jain Education International २ द ब सेलपणजुत्तं. ३ द ब सोऊस. ४ द गिरिणा . ५ द वेलुरिय. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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