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-१. २५८१]
चउत्थो महाधियारो
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मंदरणामो सेलो हवेदि तस्सि विदेहवरिसम्मि । किंचि विसेसो चेदि तस्स सरूवं परूवेमो ॥ २५७५ तहीवे पुब्वावरविदेहवस्साण होदि बहुमज्झे । पुवपवणिदरूवो एकेको मंदिरो' सेलो ॥ २५७६ जोयणसहस्सगाढा चुलसीदिसहस्सजोयणुच्छेहा । ते सेला पत्तेक्कं वररयणवियप्पपरिणामा ॥ २५७७
१०००। ८४०००। मेरुतलस्स य रुदं दस य सहस्साणि जोयणा होति । चउणउदिसयाई पि य धरणीपट्टम्मिए रुंदा ॥ २५७८
१०००० । ९४००। जोयणसहस्समेक्कं विक्खंभो होदि तस्स सिहरम्मि । भूमीय मुहं सोहिय उदयहिदे भूमुहादु हाणिचयं ॥ २५७९ तक्खयवडिपमाणं छहसभागं सहस्सगाढम्मि । भूमीदो उवरिं पि य एक दसरूवमवहरिदं ॥२५८०
मेरुतलस्स य रुंदं पंचसया णवसहस्स जोयणया । सम्वत्थं खयवड्डी दसमंसं केइ इच्छंति ॥ २५८१
पाठान्तरम् ।
उस द्वीपके भीतर विदेहक्षेत्रमें किञ्चत् विशेषताको लिये हुए जो मन्दर नामक पर्वत स्थित है उसके स्वरूपको कहते हैं ॥ २५७५ ।।
उस द्वीपमें पूर्व और अपर विदेहक्षेत्रों के बहुमध्यभागमें पूर्वोक्त स्वरूपसे संयुक्त एक एक मन्दरपर्वत स्थित है ॥ २५७६ ॥
उत्तम एवं नाना प्रकारके रत्नोंके परिणामस्वरूप वे प्रत्येक पर्वत एक हजार योजन प्रमाण अवगाहसे सहित और चौरासी हजार योजन ऊंचे हैं ॥ २५७७ ॥
अवगाह १००० । उत्सेध ८४०००। मेरुका विस्तार तलभागमें दश हजार योजन और पृथिवीपृष्ठपर चौरानबैसौ योजनप्रमाण है ॥ २५७८ ॥ १०००० । ९४०० ।
उस मेरुका विस्तार शिखरपर एक हजार योजनमात्र है। भूमिमेंसे मुखको कम करके शेषमें उंचाईका भाग देनेपर भूमिकी अपेक्षा हानि और मुखकी अपेक्षा वृद्धिका प्रमाण आता है ॥ २५७९ ॥ अवगाहमें - ( १०००० - ९४०० )४ १००० = । भूमिसे ऊपर (९४०० - १०००)४८४००० = १. हा. वृ. ।
__ वह क्षय-वृद्धिका प्रमाण एक हजार योजनमात्र अवगाहमें योजनके दश भागोंमेंसे छह भाग अर्थात् छह बटे दस भाग और पृथिवीके ऊपर दश रूपोंसे भाजित एक भाग. मात्र है ॥ २५८० ॥ ६। ।
कितने ही आचार्य मेरुके तल विस्तारको नौ हजार पांचसौ योजनमात्र मानकर सर्वत्र क्षय-वृद्धिका प्रमाण दशवां भाग मानते हैं ॥२५८१ ॥ ९५००-१००० : ८५००० = २० ।
पाठान्तर ।
१ दब पुव्वं वण्णिद. २ दब मंदिरा.
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