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________________ -१. २५५९ ] चउत्थो महाधियारो [४६३ दोपासेसुं दक्खिणइसुगारगिरिस्स दो भरहखेत्ता। उत्तरइसुगारस्स य भवंति एरावदा दोणि ॥ २५५२ दोण्णं इसुगाराणं बारसकुलपव्वयाण विच्चाले । अरविवरेहिं सरिच्छा विजया सवे वि धादईसंडे ॥ २५५३ अंकायारा विजया भागे अभंतरम्मि ते सव्वे । सत्तिमुहं पिव बाहिं सयदुद्धिसमा य पस्सभुजा ॥ २५५४ अभंतरम्मि भागे मज्झिमभागम्मि बाहिरे भागे । विजयाणं विक्खभ धादइसंडे परूवेमो ॥ २५५५ दुसहस्सजोयणाणिं पंचुचरसयजुदाणि पंचंसा । उणवीसहिदा रुंदा हिमवंतगिरिस्स णादग्वं ॥ २५५६ २१०५। ५| महहिमवंत रुंद चउहदहिमवंतरुंदपरिमाणं । णिसहस्स होदि वासो महहिमवंतस्स चउगुणो वासो ॥ २५५७ ८४२१ । १|३३६८४ । ४ १९१९ एदाणं सेलाणं विक्खंभो मेलिऊण चउगुणिदो । सम्वाण कुलगिरीण रुंदसमासो पुढो होदि ॥ २५५८ दोणं इसुगाराणं विक्खंभो होदि दो सहस्साणि । तास्स मिलिदे धादइसंडे गिरिरुद्धखिदिमाणं ॥ २५५९ २०००। दक्षिण इष्वाकार पर्वतके दोनों पार्श्वभागोंमें दो भरतक्षेत्र और उत्तर इष्वाकार पर्वतके दोनों . पार्श्वभागोंमें दो ऐरावतक्षेत्र हैं ॥ २५५२ ॥ ___ धातकीखण्डद्वीपमें दोनों इष्वाकार और बारह कुलपर्वतोंके अन्तरालमें स्थित सब क्षेत्र अरविवर अर्थात् चकेके अरोंके मध्यमें रहनेवाले छेदोंके समान हैं ॥ २५५३ ।। वे सब क्षेत्र अभ्यन्तर भागमें अंकाकार और बाह्यमें शक्तिमुख हैं। इनकी पार्श्वभुजायें गाडीकी उद्धिके समान हैं ॥ २५५४ ॥ ____ अब धातकीखण्डद्वीपके क्षेत्रोंका अभ्यन्तर, मध्य और बाह्य भागमें जितना विस्तार है उसे कहते हैं ॥ २५५५ ॥ दो हजार एकसौ पांच योजन और उन्नीससे भाजित पांच भागप्रमाण हिमवान्पर्वतका विस्तार समझना चाहिये ॥ २५५६ ॥ २१०५१५ । महाहिमवान्पर्वतका विस्तारप्रमाण हिमवान्पर्वतके विस्तारसे चौगुणा और निषधपर्वतका विस्तार महाहिमवान्पर्वतके विस्तारसे चौगुणा है ॥ २५५७ ॥ ८४२११३ । ३३६८४३३ ।। इन तीनों पर्वतोंके विस्तारको मिलाकर चौगुणा करनेपर सब कुलपर्वतोंके विस्तारका संकलन होता है ॥ २५५८ ॥ २१०५.५ + ८४२११३ + ३३६८४१२ x ४ = १७६८४२२२३ । दोनों इष्वाकार पर्वतोंका विस्तार दो हजार योजनप्रमाण है । उपर्युक्त कुलपर्वतोंके विस्तारप्रमाणमें इसको भी मिला देनेपर धातकीखण्डद्वीपमें सम्पूर्ण पर्वतरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण होता है ॥ २५५९ ॥ २००० । १ द ब एरावदो. २ द अरविववेहि, ब अवरविवरेहि. ३ ब चउदह, ४ द ब मेलिदे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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