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________________ ४४२] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २३७३ पच्छिमदिसाए गच्छदि सिंधुणई रोहियासहरिकता । सीदोदा णरकता रुप्पतडा सत्तमी य रत्तोदा ॥ २३७३ । एवं एरावदखेत्तस्स वण्णणा समत्ता। इसपादगणिदजीवा गणिदध्वा दसपदेण ज वग्गं । मूलं चावायारे खेत्तेत्थं होदि सहमफलं ॥ २३७४ पंचतितिएक्कदुगणभछक्का अंककमेण जोयणया । एक्कछतिहरिदचउणवदुगभागो भरहखेत्तफलं ॥ २३७५ ६०२१३३५। २९४ । तियएक्कंबरणवदुगणवचउइगिपंचएक्क यंसा य । तिण्णिसयबारसायं खेत्तफलं णिसहसेलस्स ॥ २३७६ १५१४९२९०१३ । ३१२। ३६१ दुखणवणवचउतियणवछण्णवदुगजोयणेकपंतीए । भागा तिणि सया इगिछत्तियहरिदा विदेहखेत्तफलं ॥ २३७७ २९६९३४९९०२ । ३०० । ९ भरहादी णिसहता जेत्तियमेत्ता हवंति खेत्तफलं । तं सव्वं वत्तव्वं एरावदपहुदिणीलंतं ॥ २३७८ सिन्धुनदी, रोहितास्या, हरिकान्ता, सीतोदा, नरकान्ता, रूप्यकूला और सातवीं रक्तोदा, ये सात नदियां पश्चिमदिशामें जाती हैं ॥ २३७३ ॥ इसप्रकार ऐरावतक्षेत्रका वर्णन समाप्त हुआ । बाणके चतुर्थ भागसे गुणित जीवाका जो वर्ग हो उसको दशसे गुणा कर प्राप्त गुणनफलका वर्गमूल निकालनेपर धनुषके आकार क्षेत्रका सूक्ष्म क्षेत्रफल जाना जाता है ॥ २३७४ ॥ बाण ५२६६१ = १०००° । जीवा १४४७१३५२ = २ ७४ ९५ ४ । अतएव भरतक्षेत्रका क्षेत्रफल हुआ । (१०९९° x x २७ ४९५४)x १० = ( ६८७३ ६५० ० ०)x१० =V ४ ७ २ ४ १ ८ १ ३ ८ २ २ ५००० ० ० ० ० = ६०२१३३५३६४ । पांच, तीन, तीन, एक, दो, शून्य और छह, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और तीनसौ इकसठसे भाजित दोसौ चौरानबै भागप्रमाण भरतक्षेत्रका सूक्ष्म क्षेत्रफल है ॥ २३७५ ॥ ६०२१३३५३६।। तीन, एक, शून्य, नौ, दो, नौ, चार, एक, पांच, और एक, इन अंकोंसे जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और एक योजनके तीनसौ इकसठ भागोंमेंसे तीनसौ बारह भागप्रमाण निषधपर्वतका क्षेत्रफल है ॥ २३७६ ॥ १५१४९२९०१३३६३ । दो, शून्य, नौ, नौ, चार, तीन, नौ, छह, नौ और दो, इन अंकोंको एक पंक्तिमें रखने से जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और तीनसौ इकसठसे भाजित तीनसौ भागप्रमाण विदेहका क्षेत्रफल है ॥ २३७७ ॥ २९६९३४९९०२३६१।। ___ भरतक्षेत्रसे लेकर निषधपर्वत तक जितना क्षेत्रफल है, वह सब ऐरावतक्षेत्रसे लेकर नीलपर्वततक भी कहना चाहिये ॥ २३७८ ॥ १ अतः परं हिमवद्-हैमवतादिपर्वत-क्षत्राणां क्षेत्रफलसूचकगाथास्त्रुटिता इति भाति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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