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________________ -४. २३३३ ] चउत्थो महाधियारो सीदोदादुतडेसुं दीओववणस्स वेदिपुवाए । णीलणिसहद्दिमझे अवरविदेहस्स अवरदिब्भाए ॥ २३२५ बहुतरमणीयाई भूदारण्णाई दोणि सोहंति । देवारण्णसमाणं सवं चिय वण्णणं ताणं ॥ २३२६ ।एवं विदेहवण्णणा समत्ता । णीलगिरी णिसहो पिव उत्तरपासम्मि दोविदेहाणं । णवरि विसेसो अण्णे कूडाणं देवदेविदहणामा ॥ २३२७ सिद्धक्खो णीलक्खो पुव्वविदेहो त्ति सीदकित्तीओ । णारी अवरविदेहो रम्मकणामावदसणो कूडो ॥ २३२८ एदेसु पढमकूडे जिणिंदभवणं विचित्तरयणमयं । उच्छेहप्पहुदीहिं सोमणसि जिणालयसमाणं ॥ २३२९ सेसेसु कूडेसुं वेंतरदेवाण होंति णयरीओ । णयरीसु पासादा विचित्तरूवा णिरुवमाणा ॥ २३३० वेंतरदेवा सव्वे णियणियकूडाभिधाणसंजुत्ता । बहुपरिवारा दसधणुतुंगा पल्लप्पमाणाऊ ॥ २३३१ उवरिम्म णीलगिरिणो केसरिणामहम्मि दिव्वम्मि । चेटेदि कमलभवणे देवी कित्ति त्ति विक्खादा ॥ २३३२ धिदिदेवीय समाणो तीए सोहेदि सव्वपरिवारो। दसचावाणिं तुंगा णिरुवमलावण्णसंपुण्णा ॥ २३३३ द्वीपोपवनसम्बन्धी वेदीके पूर्व और अपरविदेहके पश्चिम दिग्भागमें नील-निषधपर्वतके मध्य सीतोदाके दोनों तटोंपर बहुतसे वृक्षोंसे रमणीय भूतारण्यनामक दो वन शोभित हैं। इनका समस्त वर्णन देवारण्योंके ही समान है ॥ २३२५-२३२६ ॥ इसप्रकार विदेहक्षेत्रका कथन समाप्त हुआ। दोनों विदेहोंके उत्तर पार्श्वभागमें निषधके ही समान नीलगिरि भी स्थित है । विशेष इतना है कि इस पर्वत्पर स्थित कूटों, देव-देवियों और द्रहोंके नाम अन्य ही हैं ॥ २३२७ ॥ सिद्धाख्य, नीलाख्य, पूर्व विदेह, सीता, कीर्ति, नारी, अपरविदेह, रम्यक और अपदर्शन, इसप्रकार इस पर्वतपर ये नौ कूट स्थित हैं ॥ २३२८॥ इनमेंसे प्रथम कूटके ऊपर सौमनसस्थ जिनालयके समान उंचाई आदिसे सहित विचित्ररत्नमय जिनेन्द्र भवन स्थित है ।। २३२९ ॥ शेष कूटोंपर व्यन्तरदेवोंकी नगरियां और उन नगरियोंमें विचित्ररूपवाले अनुपम प्रासाद हैं ॥ २३३०॥ . सब व्यन्तर देव अपने अपने कूटोंके नामोंसे संयुक्त, बहुत परिवारोंसे सहित, दश धनुष ऊंचे और एक पल्य-प्रमाण आयुवाले हैं ॥ २३३१ ।। नीलगिरिके ऊपर स्थित केसरीनामक दिव्य द्रहके मध्यमें रहनेवाले कमल-भवनपर कीर्ति नामसे विख्यात देवी स्थित है ॥ २३३२ ॥ उस देवीका सब परिवार धृतिदेवीके समान ही शोभित है । यह देवी दश धनुष ऊंची और अनुपम लावण्यसे परिपूर्ण है ॥ २३३३ ॥ १ द ब विसेसो एसो अण्णे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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