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________________ -४.२३१४ ] चउत्थो महाधियारो [ ४३५ पत्तेकं पुथ्वावरविदेहविजएसु अजखंडम्मि । सीदासीदोदाणं दुतडेसु जिणिदपडिमाभो ॥ २३०५ चेटुंति तिपिण तिणि य पणमियचलणा तियंसणिवहहिं । सम्वाभो छण्णउदी तित्थट्टाणाणि मिलिदाओ ॥ २३०६ गयदंतगिरी सोलस सीदासीदोदयाण तीरेसुं । पणसयजोयणउदया कुलगिरिपासेसु एक्कसयहीणा ॥ २३०७ ५००। ४००। वक्खाराण दोसं पासेसुं होंति दिव्ववणसंडा । पुह पुह गिरिसमदीहा जोयणदलमेत्तवित्थारा ॥ २३०८ सव्वे वक्खारगिरी तुरंगखंधेण होति सारिच्छा । उवरिम्मि ताण कूडा चत्तारि हवंति पत्तेक्कं ॥ २३०९ सिद्धो वक्खारुडाधोगदविजयणामकूडा यते सव्वे रयणमया पव्वयचउभागउच्छेहो॥ २३१० सीदासीदोदाणं पासे एक्को जिणिदभवणजुदो । सेसा य तिणि कूडा वेंतरणयरेहिं रमणिज्जा ॥ २३११ रोहीए समा बारसविभंगसरियामो वासपहुदीहि । परिवारणईओ तह दोसु विदेहेसु पत्तेकं ।। २३१२ २८०००। कंचणसोवाणाओ सुगंधविमलेहिं सलिलभरिदाभो। उववणवेदीतोरणजुदाओ णचंतउम्मीभो ॥ २३१३ तोरणदाराणुवरिमैठाणट्रिदजिणणिकेदणिचिदाभो । सोहंति णिरुवमाणा सयलामो विभंगसरियाओ ॥ २३१४ पूर्वापर विदेह क्षेत्रों से प्रत्येक क्षेत्रके आर्यखण्डमें सीता-सीतोदाके दोनों किनारोंपर, जिनके चरणोंमें देवोंके समूह नमस्कार करते हैं ऐसी तीन तीन जिनेन्द्रप्रतिमायें स्थित हैं। ये सर्व तीर्थस्थान मिलकर छयानबै हैं ॥ २३०५-२३०६ ॥ सोलह गजदन्तपर्वत सीता-सीतोदाके किनारोंपर पांचसौ योजन और कुलाचलोंके पार्श्वभागोंमें एकसौ कम अर्थात् चारसौ योजन ऊंचे हैं ॥ २३०७ ॥ वक्षार पर्वतोंके दोनों पार्श्वभागोंमें पृथक् पृथक् पर्वतसमान लंबे और अर्द्धयोजनमात्र विस्तारवाले दिव्य वनखण्ड हैं ॥ २३०८॥ सब वक्षार पर्वत घोडेके स्कंधके सदृश होते हैं। इनमें से प्रत्येक पर्वतके ऊपर चार कूट हैं ।। २३०९ ॥ ___ इनमें से प्रथम सिद्धकूट, द्वितीय वक्षारके समान नामवाला, और शेष दो कूट वक्षारोंके अधस्तन और उपरिम क्षेत्रोंके नामोंसे युक्त हैं। वे सब रत्नमय कूट अपने पर्वतकी उंचाईके चतुर्थभाग प्रमाण ऊंचे हैं ।। २३१० ॥ सीता-सीतोदाके पार्श्वभागमें एक कूट जिनेन्द्रभवनसे युक्त, और शेष तीन कूट व्यन्तरनगरोंसे रमणीय हैं ॥ २३११ ।। दोनों विदेहोंमें रोहित्के समान विस्तारादिसे सहित बारह विभंगनदियां हैं। इनमेंसे प्रत्येक नदीकी परिवार नदियां रोहित्के ही समान अट्ठाईस हजार प्रमाण हैं ॥ २३१२ ॥ सम्पूर्ण विभंगनदियां सुवर्णमय सोपानोंसे सहित, सुगंधित निर्मल जलसे परिपूर्ण, उपवन, वेदी एवं तोरणोंसे संयुक्त, नृत्य करती हुई लहरोंसे सहित, तोरणद्वारोंके उपरिम प्रदेशमें स्थित जिनभवनोंसे युक्त और उपमासे रहित होती हुई शोभायमान होती हैं ॥ २३१३-२३१४ ॥ १ द ब सिद्धा वक्खारभोगदविजओ णागणाम कूडा. २ द ब उच्छेहो. ३ द व तोरणदाराउवरिम'. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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