SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -१. २२९५] चउत्थो महाधियारो [४३३ रायाधिरायवसहा तस्थ विरायति ते महाराया । छत्तचमरेहि जुत्ता अर्द्धमहासयलमंडलिया ॥ २२८७ । भजखंडपरूवणा सम्मत्ता। णामेण मेच्छखंडा अवसेसा होति पंच खंडा ते । बहुविहभावकलंका जीवा मिच्छागुणा तेसु ॥ २२८८ णाहलपुलिंदबब्बरकिरायपहुदीण सिंघलादीणं । मेच्छाण कुलेहिं जुदा भणिदा ते मेच्छखंडा ओ ॥ २२८९ णीलाचलदक्खिणदो वक्खगिरिंदस्स' पुन्वदिब्भागे । रत्तारत्तोदाणं मज्झम्मि य मेच्छखंडबहुमज्झे ॥ २२९० चक्कहरमाणमलणो णाणाचक्कीण णामसंछण्णो । अस्थि वसह त्ति सेलो भरहक्खिदिवसहसारिच्छो ।। २२९१ एवं कच्छाविजओ वाससमासेहि वण्णिदो एत्थ । सेसाणं विजयाणं वण्णणमेवंविहं जाण ॥ २२९२ णवरि विसेसो एक्को ताण णयरीण अण्णणामा य । खेमपुरी रिटुक्खा रिटपुरी खग्गमंजुसा दोण्णि ॥ २२९३ ओसहणयरी तह पुंडरीकिणी एवमेत्थ णामाणि । सत्ताणं णयरीणं सुकच्छपमुहाण विजयाणं ॥ २२९४ अट्ठाणं एक्कसमो वच्छप्पमुहाण होदि विजयाणं । णवरि विसेसो सरियाणयरीणं अण्णणामाणि ॥ २२९५ ___ वहां श्रेष्ठ राजा, अधिराज, महाराज, छत्र-चमरोंसे युक्त अर्धमण्डलीक, महामण्डलीक और सकलमण्डलीक विराजमान रहते हैं ॥ २२८७ ।। __ आर्यखण्डकी प्ररूपणा समाप्त हुई। शेष पांच खण्ड नामसे म्लेच्छखण्ड हैं। उनमें स्थित जीव मिथ्यागुणोंसे युक्त और बहुत प्रकारके भावकलंकसे सहित होते हैं ॥ २२८८ ॥ ये म्लेच्छखण्ड नाहल, पुलिंद, बर्बर और किरातप्रभृति तथा सिंहलादिक म्लेच्छोंके कुलोंसे युक्त कहे गये हैं ॥ २२८९ ॥ नीलाचलके दक्षिण और वक्षार पर्वतके पूर्वदिग्भागमें रक्ता-रक्तोदाके मध्य म्लेच्छखण्डके बहुमध्यभागमें चक्रधरोंके मानका मर्दन करनेवाला और नाना चक्रवर्तियोंके नामोंसे व्याप्त भरतक्षेत्रसम्बन्धी वृषभगिरिके सदृश वृषभ नामक पर्वत है ॥ २२९०-२२९१ ॥ इसप्रकार यहां संक्षेपमें कच्छादेशके विस्तारादिका वर्णन किया गया है । शेष क्षेत्रोंका वर्णन भी इसी प्रकार जानना चाहिये ॥ २२९२ ॥ यहां विशेषता केवल एक यही है कि उन क्षेत्रोंकी नगरियोंके नाम भिन्न हैं-क्षेमपुरी, रिष्टा नामक, अरिष्टपुरी, खड्गा, मंजूषा, औषधनगरी और पुण्डरीकिणी, इसप्रकार ये यहां सुकच्छा आदि सात देशोंकी सात नगरियों के नाम हैं ।। २२९३-२२९४ ॥ वत्सा आदि आठ देशोंमें समानता है। परन्तु विशेष यही है कि यहां नदी नगरियोंके नाम भिन्न हैं ।। २२९५ ॥ . १दब अह. २६ब अद्धगिरिंदस्स. ३ दब वण्णिदा. TP 55. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy