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________________ -१.२०७७] चउत्यो महाधियारो [४०९ विज्जुप्पहस्स गिरिणो गुहयाए उत्तरमुहेणं। पविसेदि भइसाले' कसरूवेण तेत्तिभंतरिदा ॥ २०६९ मेरुबहुमझभागं णियमझप्पणिधियं पि कादूर्ण पच्छिममुहेण वचदि विदेहविजयस्स बहुमझे ॥ २०७० देवकुरुखेत्तजादा गदी सहस्सा हवंति चुलसीदी । सीदोदापडितीरं पविसंति सहस्स बादालं ॥ २०७१ अपरविदेहसमुन्भवणदी समग्गा हवंति चउलक्खा । अडदालं च सहस्सा अडतीसा पविसंति सीदोदं ।। २०७२ ४४८०३८ । जंबूदीवस्स तदो जगदीबिलदारएण संचरियं । पविसइ लवणंबुणिहिं परिवारणईहिं जुत्ता सा ।। २०७३ रुंदावगाढपहुदी हरिकंतादो भवंति दोगुणिदा । तीए बेतवेदीउववणसंडाहिरामाए ॥ २०७४ जोयणसहस्समेकं णिसहगिरिदस्स उत्तरे गंतुं । चेटुंति जमकसेला सीदोदाउभयपुलिणेसुं ॥ २०७५ णामेण य जमकूडो पुम्वम्मि तह णदीए चेटेदि । भवरे मेघकूडो फुरंतवररयणकिरणोहो ॥२०७६ दोणं' पि अंतरालं पंचसया जोयणाणि सेलाण'। दोणि सहस्सा जोयण तुंगा मूले सहस्सवित्थारो ॥२०७७ ५००।२०००।१०००। अनन्तर वह नदी उतनेमात्र (दो कोस ) अंतरसे सहित हो कुटिलरूपसे विद्युत्प्रभपर्वतकी गुफाके उत्तरमुखसे भद्रशालवन में प्रवेश करती है ॥ २०६९ ॥ मेरुके बहुमध्यभागको अपना मध्यप्रणिधि करके वह नदी पश्चिममुखसे विदेहक्षेत्रके बहुमध्यमें होकर जाती है ॥ २०७० ॥ देवकुरुक्षेत्रमें उत्पन्न हुई नदियां चौरासी हजार हैं । इनमें से ब्यालीस हजार नदियां सीतोदाके दोनों तीरों से प्रत्येक तीरमें प्रवेश करती हैं ॥ २०७१ ॥ ८४०००। अपरविदेहक्षेत्रमें उत्पन्न हुई सम्पूर्ण नदियां चार लाख अडतालीस हजार अडतीस हैं, जो सीतोदामें प्रवेश करती हैं ।। २०७२ ॥ ४४८०३८ । पश्चात् जम्बूद्वीपकी जगतीके बिलद्वारमेंसे जाकर वह नदी परिवारनदियोंसे युक्त होती हुई लवणसमुद्र में प्रवेश करती है ॥ २०७३ ।। दो तटवेदियों और उपवनखण्डोंसे अभिराम उस सीतोदानदीका विस्तार व गहराई आदि हरिकान्तानदीसे दूनी है ॥ २०७४ ॥ निषधपर्वतके उत्तरमें एक हजार योजन जाकर सीतोदानदीके दोनों किनारोंपर यमकशैल स्थित हैं ॥ २०७५ ॥ नदीके पूर्वमें प्रकाशमान उत्तम रत्नोंक किरणसमूहसे सहित यमकूट और पश्चिममें मेघकूट है ॥ २०७६ ॥ इन दोनों पर्वतोंका अन्तराल पांचसौ योजनमात्र है। प्रत्येक पर्वतकी उंचाई दो हजार योजन और विस्तार मूलमें एक हजार योजनप्रमाण है ॥ २०७७ ॥ ५०० । २००० । १०००। १ द पविसे वि. २ द ब भहसालो. ३ द ब कूडाण. ४ [ दोण्हं ]. ५ द ब सेला णिं. TP 52. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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