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-४. २०४०]
चठत्यो महाधियारो
[१०५
• खयवढीण पमाणं पणुवीसं जोयणाणि छब्भजिदं। भूमिमुहेस हीणाधियम्मि कूडाण उच्छेहो ॥ २०३४
अथवा इच्छागुणिदक्खयवड्डी खिदिविसुद्धमुहजुत्ता । कूडाण होइ उदओ तेसुं पढमस्स पणविंदं ॥ २०३५
१२५। विदियस्स वीसजुर्स सयमेकं' छम्विहत्तपंचकला।सोलससहिदं च सयं दोषिण कला वियहिदा तइज्जस्स ॥२०३६ १२०।५।
११६।२।
बारसअन्भहियसयं जोयणमद्धं च तुरिमकूडस्स । जोयणतिभागजुत्तं पंचमकूडस्स अट्टसहिदसयं ॥२०३७ ११२। ।
१०८।१।
चउजुत्तजोयणसयं छव्विहत्ता इगिकला य छटस्स । एकसयजोयणाई सत्तमकूडस्स उच्छेहो ॥ २०३८
१०४। ।
१०.।
सोमणसणामगिरिणो आयामे सगहिदम्मि जंलढुं। कूडाणमंतरालं तं चिय जाएदि पत्तेकं ॥२०३९ चत्तारि सहस्साई तिणि सया जोयणाणि पण्णरसा। तेत्तीसधियसएणं भाजिदबासीदिकलसंखा ॥ २०४०
४३१५। ८२।
१३३ वह क्षय-वृद्धिका प्रमाण छहसे भाजित पच्चीस योजन है । इसको भूमिमेंसे कम करने और मुखमें जोड़नेपर कूटोंकी उंचाईका प्रमाण आता है ॥ २०३४ ॥ २५ ।
अथवा, इच्छासे गुणित क्षय-वृद्धिको भूमिमेंसे कम करने और मुखमें मिला देनेपर कूटोंकी उंचाई होती है । इनमेंसे प्रथम कूटकी उंचाई पांचके घनप्रमाण अर्थात् एकसौ पच्चीस योजन है ।। २०३५॥ १२५।
द्वितीय कूटकी उंचाई एकसौ बीस योजन और छहसे विभक्त पांच कलाप्रमाण, तथा तृतीयकी उंचाई एकसौ सोलह योजन और तीनसे भाजित दो कलाप्रमाण है ॥ २०३६ ॥
१२०१ । ११६३। चतुर्थ कूटकी उंचाई एकसौ साढ़े बारह योजन और पांचवें कूटकी उंचाई एकसौ आठ योजन तथा एक योजनके तीसरे भागसे अधिक है ॥ २०३७ ॥ ११२३ । १०८।।
छठे कूटकी उंचाई एकसौ चार योजन और छहसे भाजित एक कलाप्रमाण तथा सातवें कूटकी उंचाई एकसौ योजनमात्र है । २०३८ ॥ १०४३ । १००।
- सौमनस नामक पर्वतकी लंबाईमें सातका माग देनेपर जो लब्ध आवे उतना प्रत्येक कूटोंके अन्तरालका प्रमाण होता है ॥ २०३९ ॥
यह अन्तरालप्रमाण चार हजार तीनसौ पन्द्रह योजन और एकसौ तेतीससे भाजित व्यासी कला है ॥ २०४० ॥ ४३१५१६३ ।
१ ब सयमेतं.
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