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- ४. १५५७ ]
चउत्थो महाधियारो
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.. ताहे गभीरगजी मेवा मुचंति तुहिणखारजलं । विससलिलं पत्तेकं पत्तेकं सत्त दिवसाणि ॥ १५४९
धूमो धूली वजं जलंतजाला य दुप्पेच्छौ । बरिसंति जलदणिवहा एकेकं सत्त दिवसाणिं ॥ १५५०३ एवं कमेण भरहे अजाखंडम्मि जोयणं एक्कं । चित्ताए उवरि ठिदा दज्झइ वढेिंगदा भूमी ॥ १५५१ वजमहग्गिबलेणं अज्जाखंडस्स वड्डियाँ भूमी। पुब्विल्लखंघरूवं मुत्तणं जादि लोयंतं ॥ १५५२ ताहे मज्जाखंडं दप्पणतलतुलिदकतिसमवढे ।गयधूलिपंककलुस होइ समं सेसभूमीहि ॥ १५५३ तत्थुवस्थिदणराणं इत्थं उदओ य सोलसं वस्सा । अहवा पण्णरसाऊ विरियादी तदणुरूवा य ॥ १५५४ तत्तो पविसदि रम्मो कालो उस्सपिणि त्ति विक्खादो । पढमो अइदुस्समओ दुइजओ दुस्समाणामा ।। १५५५ दुस्समसुलमो तदिओ चउत्थओ सुसमदुस्समो णामा। पंचमओ तह सुसमो जणप्पिओ सुसमसुसमओ छट्ठो॥१५५६ एदाण कालमाणं अवसप्पिणिकालमाणसारिच्छं । उच्छेहाउपहुदी दिवसे दिवसम्मि वईते ।। १५५७
उस समय गम्भीर गर्जनासे सहित मेघ तुहिन अर्थात् शीतल और क्षार जल तथा विषजलमेंसे प्रत्येकको सात दिन तक बरसाते हैं ॥ १५४९ ।।
इसके अतिरिक्त वे मेघोंके समूह धूम, धूलि, वज्र, एवं जलती हुई दुष्प्रेक्ष्य ज्याला, इनमेंसे हर एकको सात दिन तक बरसाते हैं ॥ १५५०॥
इस क्रमसे भरतक्षेत्रके भीतर आर्यखण्डमें चित्रा पृथिवीके ऊपर स्थित वृद्धिंगत एक योजनकी भूमि जलकर नष्ट हो जाती है ॥ १५५१ ॥
वज्र और महाअग्निके बलसे आर्यखण्डकी बढ़ी हुई भूमि अपने पूर्ववर्ती स्कन्ध स्वरूपको छोड़कर लोकान्त तक पहुंच जाती है ॥ १५५२ ॥
उस समय आर्यखण्ड शेष भूमियोंके समान दर्पणतलके सदृश कान्तिसे स्थित और धूलि एवं कीचड़की कलुषतासे रहित हो जाता है ॥ १५५३ ॥
___ वहांपर उपस्थित मनुष्योंकी उंचाई एक हाथ, आयु सोलह अथवा पन्द्रह वर्षप्रमाण और वीर्यादिक भी तदनुसार ही होते हैं ।। १५५४ ॥
___ इसके पश्चात् उत्सर्पिणी इस नामसे विख्यात रमणीय काल प्रवेश करता है। इसके छह भेदों से प्रथम अतिदुप्षमा, द्वितीय दुष्षमा, तृतीय दुष्षमसुषमा, चतुर्थ सुषमदुष्षमा, पांचवां सुषमा और छठा जनोंको प्रिय सुषमसुषमा है ॥ १५५५-१५५६ ॥
इनका कालप्रमाण अवसर्पिणीकालप्रमाणके सदृश होता है। इस उत्सर्पिणीकालमें उंचाई और आयु आदिक दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती हैं ॥ १५५७ ॥
१६ ब मेघो. २ द ब दुपेच्छे. ३ एषा गाथा ब-पुस्तके नास्ति. ४ द ब वद्रिका. ५ द ब तद्दे. ६ ब हत्थू. ७ द विक्खाओ.
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