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________________ -४. १५०४ ] चउत्थो महाधियारो [३४१ णिवाणे वीरजिणे छब्वाससदेसु पंचवरिसेसुं । पणमासेसु गदेसु संजादो सगणिो अहवा ॥ १४९९ ६०५ मा ५। [पाठान्तरम् ] वीसुत्तरवाससदे विसवो वासाणि सोहिऊण तदो। इगिवीससहस्सेहिं भजिदे भाऊण खयवड्डी ॥ १५०० २१॥ सकणिववासजुदाणं चउसदइगिसटिवासपहुदीणं । दसजुददोसयहरिदे लद्धं सोहेज विउणसट्टी ॥ १५०१ तस्सि जं' अवसेसं तस्सेय पवट्टमाणजेट्ठाऊ । रायंतरेसु एसा जुत्ती सम्वेसु पत्तेकं ॥ १५०२ णिवाणगदे वीरे चउसदइगिसट्टिवासविच्छेदे । जादो य सगणरिंदो रज वसस्स दुसयबादाला॥ १५०३ ४६१ । २४२ । दोण्णि सदा पणवण्णा गुत्ताण चउमुहस्स बादालं । वस्स होदि सहस्सं केई एवं परुवंति ॥ १५०४ २५५ । ४२। [ पाठान्तरम् ] ___ अथवा, वीर भगवान्के निर्वाणके पश्चात् छहसौ पांच वर्ष और पांच महिनोंके चले जानेपर शक नृप उत्पन्न हुआ ॥ १४९९ ॥ वर्ष ६०५ मास ५। एकसौ बीस वर्षो से बीस वर्षोंको घटाकर जो शेष रहे, उसमें इक्कीस हजारका भाग देनेपर आयुके क्षय-वृद्धिका प्रमाण आता है ॥ १५०० ॥ १२० - २० + २१००० = 1 । शक नृपके वर्षोंसे युक्त चारसौ इकसठ वर्षप्रभृतिको दोसौ दशसे भाजित करनेपर जो लब्ध आवे उसे दुगणे साठ अर्थात् एकसौ बीसमेंसे कम करनेपर जो अवशिष्ट रहे उतना उसके समयमें प्रवर्तमान उत्कृष्ट आयुका प्रमाण था । यह युक्ति सब अन्य राजाओमेसे प्रत्येकके समयमें भी जानना चाहिये ॥ १५०१-१५०२ ॥ उदाहरण-शक नृप वीरनिर्वाणके पश्चात् ४६१ वर्षमें उत्पन्न हुआ। शकोंका राज्यकाल २४२ वर्ष है। (१) १२० - { (४६१ + २४२ ) २१० } = ११६३३७ वर्ष शकारज्यके अन्तमें उत्कृष्ट आयुका प्रमाण । (२) १२० - { ( ९७८५१३ + २४२ ) २१० } = ७२३६३. वर्ष । (३) १२० - { (१४७९३ + २४२) २१० } =४८१५ वर्ष । (४) १२० - { (६०५३३ + २४२) २१० } = ११५३ ५३३ वर्ष । वीर भगवान्के निर्वाणके पश्चात् चारसौ इकसठ वर्षों के बीतनेपर शक नरेन्द्र उत्पम हुआ। इस वंशके राज्यकालका प्रमाण दोसौ ब्यालीस वर्ष है ।। १५०३ ॥ ४६१ । २४२। ___ गुप्तोंके राज्यकालका प्रमाण दोसौ पचवन वर्ष और चतुर्मुखके राज्यकालका प्रमाण न्यालीस वर्ष है । इस सबको मिलाने पर एक हजार वर्ष होते हैं, ऐसा कितने ही आचार्य निरूपण करते हैं । १५०४ ॥ २५५ । ४२ । ४६१ + २४२ + २५५ + ४२ = १००० वर्ष । १द २१०,२१००१.२ दब 'वीस. ३दव तिस्सजं. ४ दब पारंतरसु, ५ दबवस्सस्स. ६द दुयवादाला. ७वजुत्ताणं. .... ......... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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