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________________ ३३२] तिलोयपण्णत्ती [४. १९३० कोमारमंडलित्ते कमसो छ? सपण्णदोणिसया। विजओ सट्टी रजं चउसट्टिसहस्सचउसया तालं ॥ १४३० २५० । २५०। ६०। ६४४४०। कोमारो दोणि सया वासा पण्णास मंडलीयतं । दत्ते विजओ पण्णा इगितीससहस्ससगसया रजं ॥१४३१ २००। ५० । ५०।३१७०० । अट्ठमए इगितिसया कमेण कोमारमंडलीयत्तं । विजयं चालं रज एकरससहस्सपणसया सट्ठी ॥१४३२ १००।३००। ४०। ११५६० । सोलस छप्पण्ण कमे वासा कोमारमंडलीयत्तं । किण्हस्स अट्ट विजओ वीसाधियणवसया रजं ॥ १४३३ ..१६ । ५६ । ८ । ९२० । सत्तीकोदंडगदा चक्ककिवाणाणि संखदंडाणि । इय सत्त महारयणा सोईते भद्धचक्कीणं ॥ १४३४ मुसलाइं लंगलाई संदाई रयणावलीओ चत्तारि । रयणाई राजंते बलदेवाणं णवाणं पि ॥ १४३५ अणिदाणगदा सब्वे बलदेवा केसवा णिदाणगदा । उडुंगामी सम्वे बलदेवा केसवा अधोगामी ।।१४३६ __ छठे नारायणका कुमार और मण्डलित्वकाल क्रमसे दोसौ पचास वर्ष, विजयकाल साठ वर्ष, और राज्यकाल चौंसठ हजार चारसौ चालीस वर्षप्रमाण कहा गया है ॥ १४३० ॥ पुंडरीक- कु. २५०, मं. २५०, वि. ६०, रा. ६४४४० । दत्त नारायणका कुमारकाल दोसौ वर्ष, मण्डलीककाल पचास वर्ष, विजयकाल पचास वर्ष और राज्यकाल इकतीस हजार सातसौ वर्षप्रमाण कहा गया है ॥ १४३१ ।। दत्त-कु. २००, मं. ५०, वि. ५०, रा. ३१७०० । आठवें नारायणका कुमार और मण्डलीककाल क्रमसे एकसौ और तीनसौ वर्ष, विजयकाल चालीस वर्ष और राज्यकाल ग्यारह हजार पांचसौ साठ वर्षप्रमाण निर्दिष्ट किया गया है ॥ १४३२ ॥ नारायण-कु. १००, मं. ३००, वि. ४०, रा. ११५६० । कृष्ण नारायणका कुमार और मण्डलीककाल क्रमसे सोलह और छप्पन वर्ष, विजयकाल आठ वर्ष और राज्यकाल नौसौ बीस वर्षप्रमाण है ॥ १४३३ ॥ कृष्ण-कु. १६, मं. ५६, वि. ८, रा. ९२० । शक्ति, धनुष, गदा, चक्र, कृपाण, शंख और दण्ड, ये सात महारत्न अर्धचक्रियोंके पास शोभायमान रहते हैं ॥ १४३४ ॥ __ मूसल, लांगल ( हल ), स्यन्दन ( रथ ) और रत्नावली ( हार ), ये चार रत्न नौ ही बलदेवोंके यहां शोभायमान रहते हैं ॥ १४३५ ॥ सब बलदेव निदानसे रहित और सब नारायण निदानसे सहित होते हैं। इसीप्रकार सब बलदेव ऊर्ध्वगामी अर्थात् स्वर्ग व मोक्षको और सत्र नारायण अधोगामी अर्थात् नरकमें जानेवाले होते हैं ।। १४३६ ॥ १ द ब मंडलीयत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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