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तिलोयपण्णत्ती
[ ४.१२१५
उसद्दतियाणं सिस्सा वीससहस्सा यणुत्तरेसु गढ़ा' । कमसो पंचजिणेसुं तत्तो बारससहस्वाणिं ॥ १२१५
भ २०००० । २०००० | २०००० | १२००० । १२००० । १२००० | १२००० | १२००० ।
तत्तो पंचजिणेसुं एक्कारसहस्सयाणि पत्तेकं । पंचसु सामिसु तत्तो एक्केके दससहस्वाणिं ॥ १२१६
११०००। ११००० | ११००० | ११००० | ११००० | १०००० | १००००| १००००| १००००|१००००|
अट्ठासीदिसयाणि कमेण सेसेसु जिणवरिंदेसुं । गयणणभभट्टसगसग दोअंककमेण सम्वपरिमाणं ॥ १२१७
८८०० । ८८०० । ८८०० | ८८०० | ८८०० | ८८०० | संमेलिदा २७७८०० । | अणुत्तरं गदं ।
सद्विसहस्सा णवसयसहिदा सिद्धिं गदा जदीण गणा । उसहस्स अजियपहुणो एक्कसया सत्तहत्तरिसहस्सा ॥१२१८
६०९०० । ७७१०० ।
सत्तरिसइस्सइगिसय संजुत्ता संभवस्स इगिलक्खं । दो लक्खा एक्कसयं सीदिसहस्साणि णंदणजिणस्स ॥ १२१९
१७०१०० । २८०१०० ।
ऋषभादिक तीन तीर्थंकरोंके क्रमसे बीस बीस हजार और इसके आगे पांच तीर्थंकरोंके बारह बारह हजार शिष्य अनुत्तर विमानों में गये हैं ।। १२१५ ॥
१२००० ।
ऋषभ २०००० । अजित २०००० । संभव २०००० । अभि. सुमति १२००० । पद्म १२००० । सुपार्श्व १२००० | चन्द्र १२००० । इसके आगे पांच तीर्थंकरोंमेंसे प्रत्येकके ग्यारह हजार और फिर पांच तीर्थकरों में से एक एकके दश हजार शिष्य अनुत्तर विमानों में गये हैं ।। १२१६ ॥
पुष्प. ११००० | शीतल विमल ११००० । अनंत कुंथु १०००० । अर १०००० ।
इसके आगे शेष जिनेन्द्रोंके क्रमसे अठासीसौ शिष्य अनुत्तर विमानोंमें गये हैं । अनुत्तर विमानोंमें जानेवाले इन सब शिष्योंका प्रमाण अंकक्रमसे शून्य, शून्य, आठ, सात, सात और दो, इन अंकोंसे निर्मित संख्याके बराबर है ॥ १२१७ ॥
मलि ८८०० । सुव्रत ८८०० | नमि ८८०० | नेमि ८८०० । पार्श्व ८८०० । वर्धमान ८८०० । सम्मिलित २७७८०० ।
११००० | श्रेयांस
११००० । वासु. १०००० । धर्म १०००० । शान्ति
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अनुत्तर जानेवालोंका कथन समाप्त हुआ ।
भगवान् ऋषभनाथके साठ हजार नौसौ, और अजित प्रभुके सतत्तर हजार एकसौ यतिगण सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ।। १२१८ ॥ ऋ. ६०९०० । अजि. ७७१०० ।
सम्भवनाथ स्वामी के एक लाख सत्तर हजार एक सौ और नन्दन जिनेन्द्र के दो लाख अस्सी हजार एकसौ यतिगण सिद्ध हुए हैं ।। १२१९ ॥ सं. १७०१०० । अभि. २८०१००
१ द व गदो.
११००० । १०००० ।
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