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________________ -४.११००] चउत्थो महाधियारो [२८७ चउसीदिसहस्साई सेयंसे बासुपुजणाहम्मि । यावत्तरि अडसट्ठी विमले छावट्रिया अणंतम्मिः ॥ १०९५ . से ८४००० । वा ७२०००। विम ६८०००। भणं ६६०००। धम्मम्मि संतिकुंथूअरमल्लीसु कमा सहस्साणि । चउसट्ठी बासट्ठी सट्ठी पण्णास चालीसा ॥ १०९६ धम्म ६४०००।सं २००० । कुं ६०००० । अर ५००००। म ४०... । सुव्वदणमिणेमीसुं कमसो पासम्मि माणम्मि । तीसं वीसट्टारस सोलसचोइससहस्साणि ॥ १०९७ सु ३०००० । ण २०००० । णेमि १८००० । पास १६००० । वीर १४०००। पुष्वधरसिक्खकोहीकेवलिवेकुविविउलमदिवादी। पत्तेकं सत्तगणा सवाणं तित्थकत्ताणं ॥ १०९८ चत्तारि सहस्साई सगसयपण्णास पुन्वधरसंखा । सिक्खगसंखा स श्चिय छस्सय ऊणिं कदं गवरि ॥ १०९९ उसह पुव्व ४७५०, सिक्ख ४१५०, णववीससहस्साणि कमेण ओहिकेवलीणं पि । वेकुम्वीण सहस्सा स श्चिय छस्सयभहिया ॥११०० __ओ ९०००, के २००००, वे २०६००, भगवान् श्रेयांसके समयमें ऋषियोंका प्रमाण चौरासी हजार, वासुपूज्य स्वामीके बहत्तर हजार, विमलनाथके अड़सठ हजार, और अनन्तनाथके छयासठ हजार था ॥ १०९५ ॥ श्रेयांस ८४००० । वासुपूज्य ७२००० । विमल ६८००० । अनन्त ६६००० । धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ और मल्लिनाथ तीर्थंकरके समयमें क्रमसे चौंसठ हजार, बासठ हजार, साठ हजार, पचास हजार और चालीस हजारप्रमाण ऋषियोंकी संख्या थी॥ १०९६ ॥ धर्म ६४००० । शान्ति ६२००० । कुंथु ६०००० । अर ५०००० । मल्लि ४००००। भगवान् सुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्वनाथ और वर्धमान स्वामीके समय में क्रमश: तीस हजार, बीस हजार अठारह हजार, सोलह हजार और चौदह हजारप्रमाण ऋषि थे ॥ १०९७ ॥ सुव्रत ३०००० । नमि २०००० । नेमि १८००० । पार्श्व १६००० । वीर १४००० । ___ सब तीर्थंकरोंमेंसे प्रत्येक तीर्थंकरके पूर्वधर, शिक्षक, अवधिज्ञानी, केवली, विक्रियाऋद्धिके धारक, विपुलमति और वादी, इसप्रकार ये सात संघ होते हैं ॥ १०९८ ॥ ऋषभनाथ तीर्थकरके इन सात गणों से पूर्वधरोंकी संख्या चार हजार सातसौ पचास थी। शिक्षकोंकी भी यही संख्या थी, परन्तु इसमेंसे छहसौ कम थे, इतनी यहां विशेषता है ॥ १०९९ ॥ उक्त तीर्थकरके क्रमसे अवधिज्ञानी नौ हजार, केवली बीस हजार, और विक्रियाधारी छहसौ अधिक बीस हजार थे ॥ ११०० ॥ १द चउदस. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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