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-४. ८८९]
चउत्थो महाधियारो
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ताणोवरि तदियाई पीढाई विविहरयणरइदाई। णियणियदुइजपीढच्छेधसमा ताण उच्छेधौ ॥ ८८४
२४२३ २२२१/२०१९/१८/१७१६ १५] १४ १३/१२ १३ १०९/८/७/
णियआदिमपीढाणं विस्थारचउत्थभागसारिच्छा । एदाणं वित्थारा तिउँणकदे तत्थ समधिए परिधी॥ ८८५
२४ | २३ | २२ २३ २० १९ १० १७ | १६ | १५ | १४ १३ १२ ४८४८४८४८/४८/४८/४८ ४८ ४८ ४८/४८४८४८
४८ ४८ ४८! ४८४८ ४८ ४८४८४८ | ९६ ९६ ताणं दिणयरमंडलसमवट्टाणं हवंति अटूटुं । सोवाणा रयणमया चउसु दिसासुं सुहप्पार्सी ॥ ८८६
। तदियपीढा सम्मत्ता । एक्केका गंधउडी होदि तदो तदियपीढउवरिम्मि । चामरकिंकिणिवंदणमालाहारादिरमणिज्जा ॥८८७ गोसीसमलयचंदणकालागरुपहुदिधूवगंधडा । पजलंतरयणदीवा णचंतविचित्तधयपंती ॥ ८८८ तीए रुंदायामा छस्सयदंडाणि उसहणाहम्मि । पणकदिपरिहीणाणिं कमसो सिरिणमिपरियंतं ॥ ८८९
६००। ५७५। ५५० । ५२५ । ५०० । ४७५। ४५० । ४२५। ४०० । ३७५ । ३५० । ३२५ । ३००।२७५।२५०।२२५। २००।१७५।१५०।१२५ १००। ७५
द्वितीय पीठोंके ऊपर विविध प्रकारके रत्नोंसे रचित तीसरी पीठिकायें होती ह । इन तीसरी पीठिकाओंकी उंचाई अपनी अपनी दूसरी पीठिकाओंकी उंचाईक समान होती है ।। ८८४ ।।
इनका विस्तार अपनी प्रथम पीठिकाओंके विस्तारके चतुर्थ भागप्रमाण होता ह, और तिगुणे विस्तारसे कुछ अधिक इनकी परिधि होती है ॥ ८८५ ।।
सूर्यमण्डलके समान गोल उन पीठोंके चारों ओर रत्नमय और सुखकर स्पर्शवाली आठ आठ सीढ़ियां होती हैं ॥ ८८६ ॥
तृतीय पीठिकाओंका वर्णन समाप्त हुआ। ___ इसके आगे इन तीसरी पीठिकाओंके ऊपर एक एक गंधकुटी होती है। यह गंधकुटी चामर, किंकिणी, वन्दनमाला और हारादिकसे रमणीय, गोशीर, मलयचन्दन और कालागरु इत्यादिक धूपोंके गंधसे व्याप्त, प्रज्वलित रत्नोंके दीपकोंसे सहित, तथा नाचती हुई विचित्र ध्वजाओंकी पंक्तियोंसे संयुक्त होती है ॥ ८८७-८८८ ॥
___ उस गन्धकुटीकी चौड़ाई और लम्बाई भगवान् ऋषभनाथके समवसरणमें छहसौ धनुषप्रमाण थी। फिर इसके पश्चात् श्रीनेमिनाथपर्यन्त क्रमसे उत्तरोत्तर पांचका वर्ग अर्थात् पच्चीस पच्चीस धनुष कम होती गयी है ।। ८८९ ॥
१ द पीढच्छेद°. २ द ब उच्छेधो. ३ ब तउणकदे. ४ द ब सुहप्पासं. ५ द ब गंधउदी. ६ ब गोसीर.
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