SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ४. ४९ ] त्यो महाधियारो विजयंतवेजयंतं जयंतैमपराजयंतणामेहिं । चत्तारि दुवाराहं जंबूदीवे चउदिसासुं ॥ ४१ } पुम्वदिलाए विजयं दक्खिणभासाय वइजयंत हि । अवरदिसाय जयंतं अवराजिदमुत्तरासाए ॥ ४२ दाणं दाराणं पत्ते भट्ट जोयणा उदभो । उच्छेहद' रुंद होदि पवेसो वि वाससमं ॥ ४३ ८।४।४। रजवाडजुदा जाणाविहरयणदामरमणिज्जा । णिवं रक्खिज्जंते वेंतरदेवेहिं चउदारा ॥ ४४ दारोवरिमपएले पत्तेक्कं होदि दारपासादा । सत्तारहभूमिजुदा जाणावरैमत्तवारणया ॥ ४५ दिष्पंतरयणदीवा विचित्तवरसालभंजिभत्यं भी । धुन्वतैधयवडाया विविद्दालोचेहिं रमणिज्जा ॥ ४६ उन्तरयणसणू समंतदो विविहरूवपुढजुत्ता । देवच्छ राहिं भजिदा' पट्टसुयपहुदिकयसोहा ॥ ४७ ( उच्छेवापदि दारम्भवणाण जेत्तिया संखा । तप्परिमाणपरूवणउवएसो संपहि पणट्ठो ॥ ४८ सीहासणछत्ततयभामंडलचामरादिरमणिजा । रयणमया जिणपडिमा गोउरदारेसु सोहंति ॥ ४९ जम्बूद्वीपकी चारों दिशाओंमें विजयन्त ( विजय ), वैजयन्त, जयन्त और अपराजयन्त ( अपराजित ) इन नामोंसे प्रसिद्ध चार द्वार हैं ॥ ४१ ॥ [ १४७ इनमें विजय पूर्व दिशामें, वैजयन्त दक्षिण दिशामें, जयन्त पश्चिम दिशामें, और अपराजित द्वार उत्तर दिशाम है ॥ ४२ ॥ उपर्युक्त द्वारोंमेंसे प्रत्येक द्वारकी उंचाई आठ योजन, विस्तार उंचाईसे आधा अर्थात् चार योजन, और प्रवेश भी विस्तारके समान चार योजन है ||४३|| उंचाई ८; व्यास ४; प्रवेश ४ यो . । उत्कृष्ट वज्रमय कपाट युक्त और नानाप्रकारके रत्नोंकी मालाओंसे रमणीय ये चारों द्वार व्यन्तर देवोंसे सदा रक्षित हैं ॥ ४४ ॥ प्रत्येक द्वारके उपरिम भागमें सत्तरह भूमियोंसे युक्त, अनेकानेक उत्तम बारामदोंसे सुशोभित, प्रदीप्त रत्नदीपकोंसे सहित, नानाप्रकारकी उत्तम पुत्तलिकाओंसे युक्त स्तम्भोंवाले, लहलहाती हुई ध्वजापताकाओंसे युक्त, विविधप्रकारके दृश्योंसे रमणीय, उत्तुंग रत्नशिखरोंसे संयुक्त, सब ओर नानाप्रकारके स्पष्ट रूपोंसे युक्त, देवों व अप्सराओंसे सेवित, और पट्टांशुक आदिसे शोभायमान द्वारप्रासाद हैं ॥ ४५-४७ ॥ इन द्वारभवनोंकी उंचाई तथा विस्तारका जितना प्रमाण है, उस प्रमाणके प्ररूपणका उपदेश इस समय नष्ट होचुका है ॥ ४८ ॥ गोपुरद्वारोंपर सिंहासन, तीन छत्र, भामण्डल और चामरादिसे रमणीय रत्नमय जिनप्रतिमायें शोभायमान होती हैं ॥ ४९ ॥ १ ६ जयं च अपराजयं च. २ द व उच्छेम ३ द वरचत्त, व बरबत्त ४ द भंजिअद्धंभा, व भंजिअर्द्धहा. ५ द व दुब्भंत. ६ द अभ्यंतरयणमाणुसमंतादो, व अभ्यंतरयणसाणुसमंतादो. ७६ ब दोवच्छाराहिं. ८ द व भविदा. ९ द उच्छेहओस, व उच्छेदउस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy