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________________ ५२] तिलोयपण्णत्ती [२.९खरपंकप्पब्बहुला भागा रयणप्पहाए पुढवाएं । बहलत्तणं सहस्सा सोलसे चउसीदि सीदी य ॥९ १६०००। ८४०००। ८००००। खरभागो णादव्यो सोलसभेदेहिं संजुदो णियमा । चित्तादीओ खिदियो तेसिं चित्ता बहुवियप्पा ॥ १० णाणाविहवण्णाओ महिओ तह सिलातला उववादा । वालुवसकरसीसयरुप्पसुवण्णाण वरं च ॥११ अयदंबतउरसासयमणिसिलाहिंगुलाणि हरिदालं'। अंजणपवालगोमज्जगाणि रुजगं कलंभपदराणि ॥ १२ तह अंबवालुकामओ फलिहं जलकंतसूरकंताणि । चंदप्पहवेरुलियं गेरुवचंदस्सलोहिदकाणि ॥ १३ बंबयबगमोअसारग्गपहृदीणि विविहवण्णाणि । जा होति ति एत्तेण चित्तेत्ति य वण्णिदा एसौ ॥१४ एदाएं बहलत्तं एक्कसहस्सं हवंति' जोयणया । तीए हेट्टा कमसो चोद्दस अण्णा य द्विदमही ॥१५ हैं। वर्तमान पर्यायसम्बन्धी आयुके अन्तिम अन्तर्मुहूर्तमें जीवके प्रदेशोंके आगामी पर्यायके उत्पत्तिस्थान तक फैलजानेको मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं। जब आयुकर्मकी स्थिति सिर्फ अन्तर्मुहूर्त ही बाकी हो, परन्तु नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मकी स्थिति अधिक हो, तब सयोगकेवली दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण समुद्घातको करते हैं। ऐसा करनेसे उक्त तीनों कर्मोकी स्थिति भी आयुकर्मके बराबर होजाती है। इन तीनों अवस्थाओंमें त्रस जीव त्रसनालीके बाहर भी पाये जाते हैं। ___अधोलोकमें सबसे पहिली रत्नप्रभा पृथिवी है । उसके तीन भाग हैं-- खरभाग, पंकभाग और अब्बहुलभाग। इन तीनों भागोंका बाहल्य क्रमशः सोलह हजार, चौरासी हजार, और अस्सी हजार योजनप्रमाण है ॥९॥ - खरभाग १६०००, पंकभाग ८४००० अब्बहुलभाग ८०००० यो.। इनमें से खरभाग नियमसे सोलह भेदोंसे सहित है। ये सोलह भेद चित्रादिक सोलह पृथिवीरूप हैं । इनमेंसे चित्रा पृथिवी अनेक प्रकार है ॥१०॥ __ यहांपर अनेकप्रकारके वर्णोसे युक्त महीतल, शिलातल, उपपाद, वालु, शक्कर, शीशा, चांदी, सुवर्ण, इनके उत्पत्तिस्थान, वज्र तथा अयस् ( लोहा ) तांबा, त्रपु ( रांगा), सस्यक ( मणिविशेष ) मणिशिला, हिंगुल (सिंगरफ), हरिताल, अंजन, प्रवाल ( मूंगा ), गोमेदक (मणिविशेष ), रुचक, कदंब (धातुविशेष ), प्रतर (धातुविशेष ), ताम्रवालुका ( लाल रेत ), स्फटिक मणि, जलकान्त मणि, सूर्यकान्त मणि, चन्द्रप्रभ (चन्द्रकान्त मणि ), वैडूर्य मणि, गेरु, चन्द्राश्म, लोहितांक (लोहिताक्ष ? ), बंबय ( पप्रक ? ), बगमोच [?], और सारंग इत्यादिक विविध वर्णवाली धातुएं हैं, इसीलिये इस पृथिवीका : चित्रा' इस नामसे वर्णन किया गया है ॥११-१४॥ . इस चित्रा पृथिवीकी मुटाई एक हजार योजन है। इसके नीचे क्रमसे चौदह अन्य पृथिवियां स्थित हैं ॥ १५॥ १ द रयणप्पहायि पुढवीए, ब रयणप्पहा य पुढवीणं. २ द ब सोल. ३ ब सिलातला ओववादा. ४ द अरिदालं. ५ द ब वण्णिदो एसो. ६ ब एदाव. ७ द हुवंति. ८ ब द रण्णा य खिदमही. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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