SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पउमचरियं (सं. पद्मरचित) जैन परंपरा अनुसार पद्म (राम) का चरित अर्थात् जैन रामायण है। प्राकृत भाषाबद्ध इस महापुराण काव्य की रचना नागिलवंशीय आचार्य विमलसूरिने ईस्वीसन् की तृतीय - चतुर्थ शताब्दी में की थी। इसका आधुनिक युग में सर्वप्रथम संपादन जर्मन विद्वान हर्मन याकोबीने किया था, जो भावनगर से सन् १९१४ में प्रकाशित हुआ था। उसीका अन्य महत्त्वपूर्ण पाठों की सहाय से शुद्ध करके स्व. आगमप्रभाकर पू. मुनिराज श्री पुण्यविजयजी म. सा. ने पुनः संपादन किया था, जो प्रा. शान्तिलाल वोरा के हिन्दी अनुवाद के साथ प्राकृत ग्रंथ परिषदने दो भागों में क्रमशः सन् १९६२ और १९६८ में प्रकाशित किया गया था। कई वर्षों से ग्रन्थ अप्राप्त हो चूका था । इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का पुनः मुद्रण प्रकाशित करते हुए हमें हर्ष हो रहा है। प्रकाशकीय परम पूज्य आचार्य श्री विजयनरचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा और पू. मुनिराज श्री धर्मरत्नविजयजी के अनन्य सहकार से परिषद् यह कार्य संपन्न कर सकी है। एतदर्थ हम इनके अत्यंत आभारी हैं । ग्रन्थ के दोनों खण्डों के पुनः मुद्रण में संपूर्ण आर्थिक सहायदाता श्री सुरत तपगच्छ रत्नत्रयी आराधक संघ ट्रस्ट, सुरत के प्रति आभार प्रदर्शित करते हुए हमें आनंद होता है । पुनः मुद्रण कार्य सुचारु ढंग से शीघ्र संपन्न करने के लिए माणिभद्र प्रिन्टर्स के श्री कनुभाई भावसार को धन्यवाद । अहमदाबाद कार्तिक पूर्णिमा, सं. २०६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only • रमणीक शाह www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy